मंगलवार, 10 जनवरी 2017

डाल दिया करो हथियार



पति पत्नि में 
चल रही थी बहस ज़ोरदार
दोनो तरफ से
हो रही थी सदवचनों की बौछार
हमेशा की तरह इस बार भी
पत्नि जीती, पति ने मानी हार
मुँह लटकाए होले होले
श्रीमान श्रीमती से बोले
क्यों मुँह की तोप से
तानों के करती रहती हो प्रहार
कभी तो हमारे आगे भी
डाल दिया करो हथियार
पत्नी जो काट रही थी आलू
अचानक हो गयी द्‍यालू
बोली, ठीक कहते हो
इस परिवार की कश्ती के
टूटे हुए पतवार
लो डाल दिया मैने हथियार
इतना कहकर उसने
आलू काटता हुआ चाकू
पति के सामने पटका
पति को लगा ज़ोर का झटका
पत्नि आती भोली
इठलाती हुई बोली
अब इस हथियार को उठाओ
आलू काटो- सब्जी बनाओ
खुद खाओ ना खाओ 
पर मुझे खिलाओ

लेखक(कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423


रविवार, 8 जनवरी 2017

जायेगा हाथ पसार


हाथ पसारे आया था इस जग में तू नादान
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार
जायेगी तेरे संग ये दौलत ना ये महल मीनार
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार

तेरा नहीं कोई अपना यहाँ बंदे
मतलब के सब रिश्ते, स्वार्थ के है फंदे
मर जायेगा केवल दो दिन रोयेंगे रिश्तेदार
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार

पानी में बनता इक है बुलबुला जीवन
इक पल में फुटेगा मिट जायेगा ये तन
है नाश्वान ये देह ये क्षणभंगुर है सब संसार
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार

माया के पीछे तू शैतान बन बैठा
लालच का पुतला तू इंसान बन बैठा
अंतसमय सब हासिल, फिर भी होगा लाचार
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार

मुक्ति अगर तुझको पानी है रे प्राणी
सब का भला सोचो बोलो मधुर वाणी
नेक कर्म कमल’ तू  करले अपना उद्धार
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार

लेखक(कवि),
मुकेश कमल
09781099423


बुधवार, 4 जनवरी 2017

मन के महासागर में

मन के महासागर में 
ख़्यालों की नांव 
चल रही है 
बिन मांझी 
बिन पतवार 
लहरों के थपेड़ों से 
डोलते ख़्याल 
चुपचाप 
बोलते ख़्याल 
जो अपने आप आते 
कभी नहीं भी आते 
कभी सही भी होते 
कभी नहीं भी होते 
पर 
ख़्यालों का प्रवाह 
जीवन का प्रवाह 
होता है 
ख़्याल 
जो बताते  है 
की अभी 
दिल नें धड़कना 
बंद नहीं किया 
धड़कनों का साज़ 
छेड़ रहा है 
नई स्वरलहरियाँ 
धड़कनें जिनसे है नाता  
गहरा ख़्यालों का 
धड़कनें जो देती है 
पहरा ख्यालों  का 
धड़कन हर-क्षण  
देती है 
ख़्याल को जन्म 
ख़्याल 
जिसमें हम 
कई बार 
ऐसे खो जाते है 
कुछ देर ही सही 
ख़ुद से भी 
दूर हो जाते है 
ख्याल रूपी 
नाँव पर सवार 
हक़ीक़त रूपी  
किनारों की तलाश में 
भटकते है 
डगमगाते है 
लड़खड़ाते है 
डरते भी है 
लहरों से
लड़ते भी है 
कभी धैर्य बंधाते है 
कभी डूब भी जाते है 
बीच मझधार 
कभी प्रयत्न संघर्ष से 
लग जाते पार

मन के महासागर में
ख्यालों की नाँव  
मन के 
महासागर में........ 

लेख़क (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423 









मंगलवार, 3 जनवरी 2017

ये बात हैं चुभती कहाँ

आदमी रुक जाते हैं ज़िंदगी रुकती कहाँ
आँधियों तूफ़ानो में भी ये शमा बुझती कहाँ

शाखें टूटी दरखतों से फिर करों कुछ भी जतन
जैसे टूटा दिल जुड़े ना वैसे ये जुड़ती कहाँ

जो सड़क मेरे शहर से जाती थी तेरे शहर तक
सड़क अब भी हैं वहीं लेकिन तेरी बस्ती कहाँ

कहने वाले तो यहाँ हैं कहते जाते बेझिजक
उनको क्या मालूम के ये बात हैं चुभती कहाँ

मौत हैं सय्याद वो- जाल जिसके पास हैं
चिड़िया जो इसमे फँसी - फिर कहीं उड़ती कहाँ

साथ जीने मरने की जो कस्में खाते थे 'कमल'
अब मुझे तू ही बता - वो तेरे साथी कहाँ

लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423 



सोमवार, 2 जनवरी 2017

कुर्सी

ना जाने क्यों वो बार-बार बदलती है 
कुर्सी वही रहती है सरकार बदलती है

नेता की है पत्नि जो नख़रे दिखाती है 
हफ़्ते में जाने कितनी वो कार बदलती है 

सीखा है  रंग बदलना, गिरगिट से  इसने यारों 
ये राजनीति  भी रंग हज़ार बदलती है 

आज है इसकी कल उसकी हो जाये 
वेश्या की तरह कुर्सी नित यार बदलती है 

जान है ना-जाने ये कब निकल जाये 
ये तो किरायेदार है घर-बार बदलती है

सागर में ज़िन्दगी के 'कमल' खेते रहो नैया 
देखते जाओ ये कितने पतवार बदलती है  

लेख़क 'कवि '
मुकेश 'कमल'
09781099423 

कहानी ख़राब हो गयी

कौशिशें तुझको भुलाने की 
तमाम ना-कामयाब हो गयी 

कल हक़ीकत में साथ थी तुम 
आज कैसे ख़्वाब हो गयी 

तुझको चाहना भी इक ख़ता थी 
गलतियां बे-हिसाब हो गयी

तस्वीर रखी थी संभाले जिसमें 
रात गुम वो किताब हो गयी 

हम सवालों से बचते फिरते 
ओर तुम हाज़िर-ज़वाब हो गयी 

ज़ाम सा दिल हमारा तोड़ा 
जाने कैसी शराब हो गयी

तुम हमको काँटा करार देकर 
आप खिलता गुलाब हो गयी

दास्तान ना बनी  'कमल' ये
ये कहानी ख़राब हो गयी 

लेख़क (कवि ),
मुकेश 'कमल'
09781099423   


शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

आधा घरवाला

ससुराल में बीवी का भाई जो साला होता 
साली की तरह वो भी आधा घरवाला होता 

होता प्यारा वो भी बड़ा हो चाहे छोटा 
कई बार लाखों  का होता है ये सिक्का खोटा 

जब-जब साला आता अपनी बहन से मिलने 
देखके उसका सूटकेस मन लगता खिलने 

खाली हाथ कभी ना बहन के घर को जाता 
कपड़े-लत्ते,  फ्रूट-मिठाई लेकर आता

रक्षाबंधन भाईदूज पर उसके जाओ 
टीका कर राखी बाँधों, बाँध के गठरी लाओ 

साला हो चाहे गोरा हो या हो काला 
साला आये जीजा के घर करे उजाला

साले के  घर जब पहुंचे हम सजनी-सैंया 
हमको भूली सजनी करती भैया-भैया 

लेख़क (कवि ),
मुकेश 'कमल'
09781099423