हर आंख रो रही है हर दिल उदास है
बिन आपके ये सारी महफ़िल उदास है
बिन आपके सूना सा हर ज़श्न है मेरा
मेरी खुशी में जो है शामिल उदास है
पकड़ के सर को है बैठा मांझी
कश्ती के बिना सागर साहिल उदास है
चलते हुऐ राही को हमराही मिल जाये
अकेले राही की तो मंज़िल उदास है
ये अज़ब सा मंज़र क्या देख रहा हूँ मैं
बाद क़त्ल करने के क़ातिल उदास है
ख्वाहिश नही ‘कमल’ तुझको, तू खुश है
जिसको नहीं हुआ कुछ हासिल उदास है
लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414
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