कल किसी ने कहा
अपना देश पीछे हटता जा रहा है
हर क्षेत्र में इसका
रुतबा घटता जा रहा है
मैंने कहाँ ‘, पगले देश घट नही बढ़ रहा है
नित नई उंचाईयों पे चढ़ रहा है,’
कांग्रेस घास की भांति
जनसंख्या बढ़ रही है
तापमान की भांति
कीमतें उपर चढ़ रही है
बेरोज़गारी का अज़गर
युवापीढ़ी को निगल रहा है
देश कितना फूल-फल रहा है
भ्रष्टचार का सुर्य उदय हुआ है
ईमानदारी का सूर्य ढल रहा है
आम आदमी इसकी लगाई
आग में जल रहा है
मंत्रियों का पेट
रिश्वत का वेट
चीज़ों का रेट
ब्याजखोर सेठ
नेता के वादें
नापाक़ इरादें
बस्ती के दादे
बिगड़े रईसज़ादे
भाई भतीजावाद
चोर बने साध
राजनीतिक अपराध
क़ैदी हो आज़ाद
कश्मीर में आतंकवाद
कुर्सी का चक्कर
विपक्ष से टक्कर
चाय में शक्कर
दाल में कंक्कर
चुनावी भाषण
और ऊंचा आसन
मिलावटी राशन
तानाशाही शासन
राजनैतिक दल
गुंडों में बल
नगरनिगम के नल
उनमें दूषित जल
ये कुछ उपलब्धियां है
जिनमें देश आगे बढ़ा है
ओर तिरंगे को विश्व मानचित्र
पर ऊंचा किये खड़ा है।
लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414
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