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बुधवार, 26 नवंबर 2025

ज़रुरत कहाँ है



इंसान में रही इंसानियत कहाँ है
कहता है मुझे इसकी ज़रुरत कहाँ है

हर और है हिंसा, दंगे-फसाद, नफ़रत
जाओ कहीं भी मिलती राहत कहाँ है

मतलब के सारे रिश्ते मतलब के रिश्तेदार
रिश्तों में पहले जैसी मुहब्बत कहाँ है

माँ-बाप के पैसों से जो करते आवारागर्दी
उन शरीफ़ज़ादों में शराफ़त कहाँ है

बच्चें भी करने लग गये, बाते बड़ों वाली
बच्चों में बच्चों जैसी आदत कहाँ है

मज़लूम को जहाँ पे इन्साफ़ मिल सके
तू ही बता ‘कमल’ वो अदालत कहाँ है

लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414

कुछ उपलब्धियां देश की


कल किसी ने कहा  
अपना देश पीछे हटता जा रहा है
हर क्षेत्र में इसका 
रुतबा घटता जा रहा है
मैंने कहाँ ‘, पगले देश घट नही बढ़ रहा है
नित नई उंचाईयों पे चढ़ रहा है,’ 
कांग्रेस घास की भांति 
जनसंख्या बढ़ रही है
तापमान की भांति 
कीमतें उपर चढ़ रही है
बेरोज़गारी का अज़गर 
युवापीढ़ी को निगल रहा है
देश कितना फूल-फल रहा है
भ्रष्टचार का सुर्य उदय हुआ है
ईमानदारी का सूर्य ढल रहा है
आम आदमी इसकी लगाई 
आग में जल रहा है
मंत्रियों का पेट
रिश्वत का वेट
चीज़ों का रेट
ब्याजखोर सेठ
नेता के वादें
नापाक़ इरादें
बस्ती के दादे
बिगड़े रईसज़ादे
भाई भतीजावाद
चोर बने साध
राजनीतिक अपराध
क़ैदी हो आज़ाद
कश्मीर में आतंकवाद
कुर्सी का चक्कर
विपक्ष से टक्कर
चाय में शक्कर
दाल में कंक्कर
चुनावी भाषण
और ऊंचा आसन
मिलावटी राशन
तानाशाही शासन
राजनैतिक दल
गुंडों में बल
नगरनिगम के नल
उनमें दूषित जल
ये कुछ उपलब्धियां है
जिनमें देश आगे बढ़ा है
ओर तिरंगे को विश्व मानचित्र 
पर ऊंचा किये खड़ा है।

लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414