बुधवार, 26 नवंबर 2025

दर्द छुपा लेना



ज़ख्म खा खा कर दुआ देना
सीख लिया हमनें भी दर्द छुपा लेना

जिसके लिये ज़हान में कोई जगह नहीं
आता है हमें उसको सीने से लगा लेना

काम निकल जाये है फिर कौन किसी का
पड़ जाये ज़रुरत तो नमश्कार बुला लेना

शहर की गलियां अब बीमारी का घर है
जा के किसी पहाड़ पे ताज़ा हवा लेना

दुनियां की भागम-भाग से जो वक़्त मिल जाये
कुछ देर अपने आप से खुद को मिला लेना

लोगों के सामने रोने से क्या होगा 
कहीं बैठ अकेले में ही आंसू बहा लेना

नफ़रत की दुकानों में है प्यार कहाँ ‘कमल’
इन सौदागरों के पास से अच्छा है विदा लेना

लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414

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