गुरुवार, 23 मार्च 2017

घूँघट की आड़ से

छोटी सी बात पर 
सुहागरात पर
घूँघट करने को कहा तो
बीवी हुई नाराज़
आजकल बकवास हो गया
पहले होता था लाज़
पूछा हमने उससे घूँघट
ना करने का राज़
बोली ' चुनरी सर पर रखती
होती सर में खाज़
ये सुन मेरे मूँह से अचानक 
कुछ ऐसा निकल गया
जिससे सुहागरात का सारा
वातावरण बदल गया
मैंने कहां 'भाग्यवान
चुनरी का दोष नहीं
लगता है तुम्हारे सिर में
जूएं पड़ गयी
मज़ाक में इतना कहते ही
श्रीमती मुझ पर राशन पानी
लेकर चढ़ गयी
बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ी की
तलाक़ तक बढ़ गयी
मैं कौशिश कर रहा था कि
सामान्य हो हालात
वर्ना मिट्टी में मिल जायेगी
आज ये सुहागरात
मैं उससे बोला
करने को डैमेज कण्ट्रोल
माय डिअर बेबी डॉल
आई लव यू
माय हार्ट, माय सोल
मैं तो तुम्हे सभ्य बनाना चाहता था
इस ज़ालिम ज़माने की नज़र ना लगे
इसलिए घूँघट करवाना चाहता था
मेरी हुस्नपरी बिन घूँघट तुम्हे देखकर
हर कोई पागल बावला हो जाएगा
ओर सीधी धूप में तुम्हारा ये
सलोना रंग सांवला हो जायेगा
डॉर्लिंग जिस समाज में हम रहते है
उसके भी कुछ क़ानून-क़ायदे है
अरे तुम क्या जानो घूँघट करने से
औरत को क्या क्या  फ़ायदे है
घूँघट करने से छेड़ता कोई मवाली नहीं
प्रदूषण के कारण चमड़ी पड़ती काली नहीं 
जानू घूँघट हमारी सदियों की परंपरा है
इसकी बुनियाद मैंने आज तो डाली नहीं
घूँघट चेहरे के दाग-धब्बे छुपाता है
बुज़ुर्गों की नज़र में सँस्कारी बनाता है
सुहागरात पर घूँघट का रिवाज़ होता है
दूल्हा अपनी दुल्हन का घूँघट उठाता है
 फिल्मो  में भी तो गाने है 
बॉलीवुड भी घूँघट को माने है
घूँघटे में चंदा है फिर भी है फैला
चारों और उजाला
होश ना खो दे कही
जोश में देखने वाला
जोश सुन दुल्हन में आ गया जोश
शत्रुघ्न सिन्हा सी दहाड़कर बोली खामोश
मैं तुम्हारी तरह रूढ़िवादी नहीं
आजकल की आधुनिक नारी हूँ
और तुम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तमो
पर मैं अकेली ही भारी हूँ
अरे उजड़े-चमन,
नज़ारे बहार के देखो
सति-सावित्री छोड़ो,
हम है राही प्यार के देखो
उसमें आमिर खान कहता है
घूँघट की आड़ से दिलबर का
दीदार अधूरा रहता है
जब तक ना पड़े आशिक़ की नज़र
श्रृंगार अधूरा रहता है 
मेरे साथ निभानी है तो 
फैशनेबल इंसान बनो 
मैं ऑलरेडी जूही चावला हूँ 
अब तुम आमिर खान बनो 
मैं  उस जूही चावला में 
अपने ख्वाबों की 
दुल्हन तलाश कर रहा हूँ 
दिलीप कुमार की सोच के साथ 
आमिर खान होने का प्रयास कर रहा हूँ 
ये घूँघट सुहागरात पर ही 
तलाक़ करवा देता 
अब धीरे धीरे मरूँगा 
ये तो रात ही मरवा देता 
श्रीमति सही कहती है 
ये घूँघट लाज़-शर्म सब बेकार है 
साड़ी-सूट नही जीन्स चलती है 
फैशनेबल संसार है 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423  



सोमवार, 20 मार्च 2017

अंधों का काना राजा


गूँगी है आवाम और, बहरी सियासत है
आज भी अंधो का राजा, कोई काना बनता है


मंदबुद्धि लोग हम अशिक्षा के रोगी हुऐ
चतुर-चापलूस नेता जी सयाना बनता है


वोट दी स्पोर्ट किया, संसद भेजा जिसे
आज पहचानता ना अनजाना बनता है


कोठी पे जो जाए, लेके जनता समस्यायें
दिल्ली गए नेता जी ये ही, बहाना बनता है


जिस क्षेत्र के हो प्रतिनिधि सांसद महोदय
एकबार वहां भी तो, शक्ल दिखाना बनता है


हम आम आदमी है गम खाके जी रहे है
आप ख़ास आपको, ज़हर खाना बनता है


उसको सुधारना है, लोकतंत्र छलिया जो
टेंटुआ समझ ई वी एम , दबाना बनता है

पांच साल चुन 'कमल', अभी तक भुगता है
इस दफा, चुनावों में उसे, दफ़नाना बनता है


लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

गुड़ की डली अच्छी लगी

उसका घर जिस गली में, वो गली अच्छी लगी 
उसकी सूरत सलोनी, सावली अच्छी लगी 

मैं नहीं भंवरा जो, हर गुलचीं पे मंडराता फिरे 
इस हसीं गुलशन की बस, एक वो कली अच्छी लगी 

दिल लगाया है ये उससे, दिल्लगी तो की नहीं
दिल चली जो संग लेकर, मनचली अच्छी लगी 

रखी थी थाली में यूं तो, बर्फी, गुलाबजामुने  
पर दिलें नादां को वो, गुड़ की डली अच्छी लगी 

लबों से ज़्यादा सवालात, थे उसकी आँखों में 
सबको को जो करदे निरुत्तर, प्रशनावली अच्छी लगी 

लड़कियां तो और भी थी पर ना-जाने क्यों 'कमल' को 
इस भरी दुनियां में एक वो,  बावली अच्छी लगी 

लेख़क 
कवि  मुकेश  'कमल' 
09781099423 

गुरुवार, 2 मार्च 2017

बैठ ख़ुद से सलाह करना

ना भूल कर वो गुनाह करना 
कि पड़ जाए नीची निगाह करना 

जो तेरे कुल को करे कलंकित
वो काम क्योंं ख़्वामख़ाह करना 

जब रिश्तों में प्यार-अदब रहे ना 
हो रिश्तें मुश्किल निबाह करना 

उसकी सूरत नहीं सीरत देखियेगा 
जिससे भी चाहो निकाह करना 

ख़ुशी से ले ले जो मिल रहा है 
जो मिल सके ना क्यों चाह करना 

ख़ुदा को क्या मूँह दिखलाओगे 
तुम, ये बैठ ख़ुद से सलाह करना 

'कमल' तू फिक्र कर दोस्तों की 
ना दुश्मनों की परवाह करना 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 








मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

लक़ीरें नहीं, कोरी हथेली है

ज़िन्दगी एक पहेली है 
हर दिन नई नवेली है 
बे-बसी खड़ी है हर मोड़ पर 
मज़बूरी वक़्त की सहेली है 

दरवेश है मज़ार की ,
सीढ़ी पे पड़ा है  वो 
आसमाँ ही छत है 
उसकी  कहाँ हवेली  है 

उड़ जाए धूल बनकर ,
काया मिट्टी की ढेली है 
करोड़ों जाने लेने वाली 
मौत, ये मौत अकेली है 

बाबा है बाल-ब्रह्मचारी, 
शायद इसीलिए  भक़्तों 
उनका चेला नहीं है कोई, 
पर सैंकड़ों चेली है 

कुर्सी कलाकंद है , 
है नेता गुलकंद 
चमचें  है चाशनी, 
जनता गुड़ की भेली है 

क्या होती है मुसीबत, 
बस जानेगा वो ही 
भुक्तभोगी है जो , 
मुसीबत जिसने झेली है 

ये क्या मज़ाक 'कमल', 
तेरे साथ हुआ है  यहाँ 
किस्मत की लक़ीरें नहीं, 
तेरी कोरी हथेली है 

लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 

शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

मैं हूँ मरुस्थल

क्या है दूसरा और मुझसा कोई 
मैं वो हूँ जिसको ना समझा कोई ॥ 

मैं किसको जाकर के अपना कहूँ 
नहीं है यहाँ मेरा अपना कोई ॥ 

मैं हूँ वो मरुस्थल जहां पर कभी 
ना बादल का टुकड़ा है बरसा कोई ॥ 

बस प्यार के चंद लफ़्ज़ों की ख़ातिर 
ना जितना मेरे और तरसा कोई ॥ 

मैंने ढूँढा बहुत पर मिला ना 'कमल'
बड़ा दुःख मुझे मेरे दुःख सा कोई ॥ 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

ये मेरी डायरियाँ ज़िन्दगी

ना पूछों मैं कैसे जिया ज़िन्दगी 
तबाह यूं ही अपनी किया ज़िन्दगी ॥ 

सिर्फ एक घूँट अमृत की ख़ातिर 
ज़हर ता-उम्र है पिया ज़िन्दगी ॥ 

जो था पास सब कुछ लुटाता गया 
दिया सबको कुछ ना लिया ज़िन्दगी ॥ 

जिस-जिस पे मैंने भरोसा किया 
दगा मुझको उसने दिया ज़िन्दगी ॥ 

हँसी मेरे लब से चुरा ले गया वो 
मुझे दे गया सिसकियां ज़िन्दगी ॥ 

जो ज़हन में था 'कमल' मैं लिखता गया 
अब है ये मेरी डायरियाँ ज़िन्दगी ॥ 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

दुनियां का चलन

इस क़ब्र में कुछ प्यार के अरमान दफ़न है 
चाहत की लाश पे - नफरत का क़फ़न है ॥  

महफ़िल में कर रहे है शमां बनके रोशनी 
जलने का जलाने का आता जिन्हें फन है ॥  

तितलियों से भंवरों से कह दो बाहर से 
गुल की तमन्ना ना करें ये उजड़ा चमन है ॥ 

हर वक़्त बस नफ़ा - नुक्सान की फ़िक़्र 
दौलत के तराज़ू में इंसान का मन है ॥ 

दिल को भी तोड़ देना, वादे भी तोड़ देना  
छोड़िये साहब ये आजकल दुनियां का चलन है ॥ 

कुछ खफ़ा है कुछ ने रंज़िश भी रखी है उससे 
सच बोलता है 'कमल' उसकी बातों में वज़न है ॥ 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 


शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

पानी में दूध

सुबह छह बजे 
घंटी बजी 
दरवाजा खोला 
सामने खड़ा था 
दूधिया भोला 
साहब नमस्ते 
दूध लीजिये 
जल्दी कीजिये 
भगोना दीजिये 
हमने भगोना आगे कर दिया 
उसने उसे भर दिया 
पर ये क्या 
हमें हुई हैरानी 
भोला ने भगोने 
में डाला केवल पानी 
मैं चौका 
उसे टोका 
अरे भाई भोला 
तू दूध वाला है या पानी वाला 
पैसे लेता है दूध के 
भगोने में सिर्फ पानी डाला 
भोला सकपका कर बोला 
माफ़ कीजिये साहब
फ़र्ज़ निभाना भूल गया 
आज ड्रम में पानी के मैं 
दूध मिलाना भूल गया 
वो बस इतना ही बोला था 
मैं आज तक सोच रहा हूँ 
क्या भोला वास्तव में भोला था 

लेखक 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423

सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

वंश बेल की वेदी

जाने मज़बूरियां क्या उसकी रही होगी 
वो मर गयी होगी या मारी गयी होगी 

जो फंदे पर है लटकी या कि लटकाई गयी होगी 
वो बहू तुम्हारी है पर, बेटी किसी की लाडली होगी 

जिसे माँ -बाप ने धूप तक लगने ना दी होगी 
वो बेटी आग में बे-वजह तो नहीं जली होगी 

वो घर कभी सम्मान का हक़दार ना होगा 
जिस घर में घर की लक्ष्मी पर ज्यादत्ती होगी 

बेटों की चाहत में हज़ारों बेटियाँ 'कमल'
वंश बेल की वेदी पे चढ़ गयी बलि होगी 

लेख़क (कवि ),
मुकेश 'कमल'
09781099423 



सोमवार, 23 जनवरी 2017

सॉलिड उनका हाज़मा

पिता पुत्र से बोले, क्या बनोंगे बेटा
बेटा बोला होकर बड़ा बनूंगा नेता

देशसेवा करूँगा बन जनता का सेवक
लोग करेंगे मेरी आपकी प्रशंसा बेशक

नाम करूँगा रोशन नेता बन के आपका
बेटे ही तो मान बढ़ाएँ अपने बाप का

सुन बेटे की बात पिताजी हुए उदास
तुमसे मैने कितनी लगा रखी थी आस

पता नहीं था बेड़ा यूँ जाएगा गर्क में
नेता बनके भिजवाओगे हमें नर्क में

नादानी में बोल गये क्योकि बच्चे हो
बन नहीं सकते नेता बेटा तुम सच्चे हो

लोकतंत्र ओर प्रजातंत्र को भस्म किए जा
राजनीति का मूलमंत्र सब हज़्म किए जा

मदिरा माँस ना खाते तुम हो शाकाहारी
लेकिन कुछ भी ना छोड़े नेता व्यभिचारी

वो खाते पशुचारा सॉलिड उनका हाजमा
बेटा तुम तो नहीं पचा पाते हो राजमा

वो खा जाए रेल ना तुम को पचती भेल
तेरा ओर नेता का आपस में क्या मेल

सड़के सरकारी पुल ओर तोपे खा जाते हैं
शहीदों के ताबूत कफ़न भी पचा जाते हैं

बनकर बाज़ ये नेता इस समाज को नोचे
जनता की बेटी बहुओं की लाज को नोचें

हजम करे देश को खाए बिन हाज़मोला
बन सकता नही नेता क्योंकि तू हैं भोला

बेटा भूखे प्यासे ही हम दोनों जी लेंगे
जनता का नहीं खून, खुद के आँसू पी लेंगे
                                                   
लेखक (कवि) 
मुकेश 'मल'
09781099423

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

सफेद बाल

एक दिन भोला
अपने कंजूस सेठ से बोला
सेठ जी आपकी सेवा करते करते
मुझे कई साल हो गये
जो काले काले लहराते थे
वो सभी सफेद बाल हो गये
बहुत बढ़ गई है महंगाई
मगर आपने
मेरी पगार नहीं बढ़ाई
अब तो मुझपे नज़रें करम किजिये
मेरे इन सफेद बालों की शरम कीजिये
सेठ जी तनख्वाह बढ़ा दीजिये
सुरसा के मुख सी बढ़ी महंगाई है
कल ही गांव से चिट्ठी आई है
बापू को दमा हो गया है
गठिया से पीड़ित माई है
पत्नी का पांव भारी है
पांचवें बच्चे की तैयारी है
दो छोटी बहन कुंवारी है
वो भी हूज़ूर मेरी ज़िम्मेवारी है
कहते कहते भोले भोला की
आंखे भर आई, चेहरा हुआ उदास
जैसे बंज़र भूमि में सूखी घास
भोला की दयनीय हालत देख
सेठ जी हो गये भावुक
बस भोला मैं दुखी हूँ
सुनके तुम्हारा दुख
मुझे क्षमा करो मेरे भाई
मैं हूँ कितना, निर्दयी कसाई
बड़ा निष्ठुर हूँ मैं, जिसे तेरे
सफेद बालों पे दया ना आई
इतना कह्कर सेठ नें
गल्ले मे हाथ डाला
और उसमें से एक मरा सा
फटेहाल पांच का नोट निकाला
भोला को देके बोले
ले भोले
तू भी क्या याद करेगा
सेठ मिला था दिलवाला
ला इन पैसों की काली मेहंदी
करले इन बालों को काला

लेखक(कवि),
मुकेश कमल
09781099423





गुरुवार, 19 जनवरी 2017

ज़िन्दगी जल जाए ना

अपनी लगाई आग में ख़ुद, आदमी जल जाए ना 
ठहर जाओ बावलों ये, ज़िन्दगी जल जाए ना 

है चमन चिंतित बहुत इस , आज के हालात पर 
औंस की बूँदों से कही, कोई कली जल जाए ना 

आग से खेलने वालों, तुम्हारी आग से 
पीढ़ियों के मासूम बचपन की, हँसी जल जाए ना

चाँद ने गर मान ली हार इस अन्धकार से
मद्धम-मद्धम सी कही ये रोशनी जल जाए ना 

दिन ये जलता रहता है दिनभर समय की आग में 
ऐ ख़ुदा तू ख़ैर कर ये, रात भी जल जाए ना 

जलने से पहले शमा अब सोचती है ये 'कमल'
मेरे जलने से किसी की झोपड़ी जल जाये ना 

लेख़क (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423 

शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

लट्टू-टट्टू

लाख इसे समझते हैं पर समझे ना ये हसीना
राह चले ये मटक मटक कर हमको आए पसीना

दो घंटे मेकप में लगाये दो घंटे पैकअप में
दो घंटे हैं फिर ये लगाती दोनो के चेकअप में

बिना बात गुस्सा हैं करती रूठ के जाती बैठ
करती आप खता पर उसकी हमे दिखाएँ ऐठ

प्यार दिखाएँ जिस दिन उस दिन समझ अनाड़ी
मंगवा कर ही मानेगी आभूषण या साड़ी

जितनी अभिनेत्री हैं बॉलीवुड में उपरवाले
उन सबके नखरें तुमने हैं इसमे डाले

कज़रारे नैनों से करके पति  को लट्टू
रखती हैं जीवनभर उसको बनके टट्टू

सच कहता हैं 'कमल 'जितने चैनल टीवी के
उससे भी ज़्यादा नखरें होते हैं बीवी की

लेखक (कवि)
मुकेश 'कमल'
09781099423



गुरुवार, 12 जनवरी 2017

आपकी मूँछ हैं कैसी


मूँछ नही तो कुछ नहीं ठीक सयाने कहते
कदर नहीं हैं उनकी जो हैं बिन मूँछों के रहते

रौब बढ़ाती मूँछ के बंदा डर जाता हैं
मूँछ ऐंठता हुआ कोई जब घर आता हैं

मूँछमुंडो को नहीं जगत में कोई पूछें 
शान निराली उनकी मुख पर जिनके मूँछें

मित्र मेरे ने मूँछ . रक्खी तो ऐसी रक्खी
जैसे नाक के नीचे बैठी हो एक मक्खी

बोला मैं चड्डा जी आपकी मूँछ हैं कैसी
कहता मूँछ हैं मेरी चार्ली चॅप्लिन जैसी

चार्ली चॅप्लिन जैसी मूँछ ना मुख पर साजे
डंके जैसी मूँछ हैं जिनकी उनका डंका बाजे

मूँछे हैं मुखमंडल पर मर्दों की निशानी
मूँछों वाले घरवाले से डरे जनानी

गुंडे-लुच्चे देखके तीखी मूँछ को भागे
और मूँछमुंडे देख दबाकर पुंछ को भागे

इसीलिए तो मूँछ की महिमा गायी हमने
पता नहीं जाने क्यूँ मूँछ कटाई हमने

लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

डाल दिया करो हथियार



पति पत्नि में 
चल रही थी बहस ज़ोरदार
दोनो तरफ से
हो रही थी सदवचनों की बौछार
हमेशा की तरह इस बार भी
पत्नि जीती, पति ने मानी हार
मुँह लटकाए होले होले
श्रीमान श्रीमती से बोले
क्यों मुँह की तोप से
तानों के करती रहती हो प्रहार
कभी तो हमारे आगे भी
डाल दिया करो हथियार
पत्नी जो काट रही थी आलू
अचानक हो गयी द्‍यालू
बोली, ठीक कहते हो
इस परिवार की कश्ती के
टूटे हुए पतवार
लो डाल दिया मैने हथियार
इतना कहकर उसने
आलू काटता हुआ चाकू
पति के सामने पटका
पति को लगा ज़ोर का झटका
पत्नि आती भोली
इठलाती हुई बोली
अब इस हथियार को उठाओ
आलू काटो- सब्जी बनाओ
खुद खाओ ना खाओ 
पर मुझे खिलाओ

लेखक(कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423


रविवार, 8 जनवरी 2017

जायेगा हाथ पसार


हाथ पसारे आया था इस जग में तू नादान
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार
जायेगी तेरे संग ये दौलत ना ये महल मीनार
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार

तेरा नहीं कोई अपना यहाँ बंदे
मतलब के सब रिश्ते, स्वार्थ के है फंदे
मर जायेगा केवल दो दिन रोयेंगे रिश्तेदार
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार

पानी में बनता इक है बुलबुला जीवन
इक पल में फुटेगा मिट जायेगा ये तन
है नाश्वान ये देह ये क्षणभंगुर है सब संसार
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार

माया के पीछे तू शैतान बन बैठा
लालच का पुतला तू इंसान बन बैठा
अंतसमय सब हासिल, फिर भी होगा लाचार
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार

मुक्ति अगर तुझको पानी है रे प्राणी
सब का भला सोचो बोलो मधुर वाणी
नेक कर्म कमल’ तू  करले अपना उद्धार
जायेगा हाथ पसार-जायेगा हाथ पसार

लेखक(कवि),
मुकेश कमल
09781099423


बुधवार, 4 जनवरी 2017

मन के महासागर में

मन के महासागर में 
ख़्यालों की नांव 
चल रही है 
बिन मांझी 
बिन पतवार 
लहरों के थपेड़ों से 
डोलते ख़्याल 
चुपचाप 
बोलते ख़्याल 
जो अपने आप आते 
कभी नहीं भी आते 
कभी सही भी होते 
कभी नहीं भी होते 
पर 
ख़्यालों का प्रवाह 
जीवन का प्रवाह 
होता है 
ख़्याल 
जो बताते  है 
की अभी 
दिल नें धड़कना 
बंद नहीं किया 
धड़कनों का साज़ 
छेड़ रहा है 
नई स्वरलहरियाँ 
धड़कनें जिनसे है नाता  
गहरा ख़्यालों का 
धड़कनें जो देती है 
पहरा ख्यालों  का 
धड़कन हर-क्षण  
देती है 
ख़्याल को जन्म 
ख़्याल 
जिसमें हम 
कई बार 
ऐसे खो जाते है 
कुछ देर ही सही 
ख़ुद से भी 
दूर हो जाते है 
ख्याल रूपी 
नाँव पर सवार 
हक़ीक़त रूपी  
किनारों की तलाश में 
भटकते है 
डगमगाते है 
लड़खड़ाते है 
डरते भी है 
लहरों से
लड़ते भी है 
कभी धैर्य बंधाते है 
कभी डूब भी जाते है 
बीच मझधार 
कभी प्रयत्न संघर्ष से 
लग जाते पार

मन के महासागर में
ख्यालों की नाँव  
मन के 
महासागर में........ 

लेख़क (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423 









मंगलवार, 3 जनवरी 2017

ये बात हैं चुभती कहाँ

आदमी रुक जाते हैं ज़िंदगी रुकती कहाँ
आँधियों तूफ़ानो में भी ये शमा बुझती कहाँ

शाखें टूटी दरखतों से फिर करों कुछ भी जतन
जैसे टूटा दिल जुड़े ना वैसे ये जुड़ती कहाँ

जो सड़क मेरे शहर से जाती थी तेरे शहर तक
सड़क अब भी हैं वहीं लेकिन तेरी बस्ती कहाँ

कहने वाले तो यहाँ हैं कहते जाते बेझिजक
उनको क्या मालूम के ये बात हैं चुभती कहाँ

मौत हैं सय्याद वो- जाल जिसके पास हैं
चिड़िया जो इसमे फँसी - फिर कहीं उड़ती कहाँ

साथ जीने मरने की जो कस्में खाते थे 'कमल'
अब मुझे तू ही बता - वो तेरे साथी कहाँ

लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423 



सोमवार, 2 जनवरी 2017

कुर्सी

ना जाने क्यों वो बार-बार बदलती है 
कुर्सी वही रहती है सरकार बदलती है

नेता की है पत्नि जो नख़रे दिखाती है 
हफ़्ते में जाने कितनी वो कार बदलती है 

सीखा है  रंग बदलना, गिरगिट से  इसने यारों 
ये राजनीति  भी रंग हज़ार बदलती है 

आज है इसकी कल उसकी हो जाये 
वेश्या की तरह कुर्सी नित यार बदलती है 

जान है ना-जाने ये कब निकल जाये 
ये तो किरायेदार है घर-बार बदलती है

सागर में ज़िन्दगी के 'कमल' खेते रहो नैया 
देखते जाओ ये कितने पतवार बदलती है  

लेख़क 'कवि '
मुकेश 'कमल'
09781099423 

कहानी ख़राब हो गयी

कौशिशें तुझको भुलाने की 
तमाम ना-कामयाब हो गयी 

कल हक़ीकत में साथ थी तुम 
आज कैसे ख़्वाब हो गयी 

तुझको चाहना भी इक ख़ता थी 
गलतियां बे-हिसाब हो गयी

तस्वीर रखी थी संभाले जिसमें 
रात गुम वो किताब हो गयी 

हम सवालों से बचते फिरते 
ओर तुम हाज़िर-ज़वाब हो गयी 

ज़ाम सा दिल हमारा तोड़ा 
जाने कैसी शराब हो गयी

तुम हमको काँटा करार देकर 
आप खिलता गुलाब हो गयी

दास्तान ना बनी  'कमल' ये
ये कहानी ख़राब हो गयी 

लेख़क (कवि ),
मुकेश 'कमल'
09781099423