मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

लक़ीरें नहीं, कोरी हथेली है

ज़िन्दगी एक पहेली है 
हर दिन नई नवेली है 
बे-बसी खड़ी है हर मोड़ पर 
मज़बूरी वक़्त की सहेली है 

दरवेश है मज़ार की ,
सीढ़ी पे पड़ा है  वो 
आसमाँ ही छत है 
उसकी  कहाँ हवेली  है 

उड़ जाए धूल बनकर ,
काया मिट्टी की ढेली है 
करोड़ों जाने लेने वाली 
मौत, ये मौत अकेली है 

बाबा है बाल-ब्रह्मचारी, 
शायद इसीलिए  भक़्तों 
उनका चेला नहीं है कोई, 
पर सैंकड़ों चेली है 

कुर्सी कलाकंद है , 
है नेता गुलकंद 
चमचें  है चाशनी, 
जनता गुड़ की भेली है 

क्या होती है मुसीबत, 
बस जानेगा वो ही 
भुक्तभोगी है जो , 
मुसीबत जिसने झेली है 

ये क्या मज़ाक 'कमल', 
तेरे साथ हुआ है  यहाँ 
किस्मत की लक़ीरें नहीं, 
तेरी कोरी हथेली है 

लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 

1 टिप्पणी: