शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

दरवाज़ा


पीठ घुमाए खड़ी है खिड़की बेवफ़ा, दरवाजों से,
छत से रूठी दीवारें है, फर्श खफ़ा दरवाजों से। 

दीवारों पर तस्वीरें है, तस्वीरों पर हार चढ़े,
एक एक करके कई पीढ़ियां हुई दफा दरवाजों से।

कर्ज़ चुका ना पाया, वो खा सल्फास मरा,
साहुकार करें पूरा, नुकसान नफा दरवाजों से।

निर्मोही एक बार -  पलट कर देख तो ले,
नम आंखों से कोई तुझको है तकता दरवाजों से

कई मर्तबा इस कूंचे से होकर के मायूस 'कमल'
दस्तक देकर खाली लौटा, कई दफा दरवाजों से।
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कवि - मुकेश कमल
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