बियाबान जंगल घनेरे में अकेला मैं
दूर तक फैले - अंधेरे में अकेला मैं
गमों, रुसवाइयों, दुश्वारियों, का जमघट
घेरे खड़ा हुआ है, घेरे में अकेला मैं
सात वचनों में तुम्हारी, भी तो हामी थी
साथ थी तुम या, सात फेरे में अकेला मैं
अपनों में अपनेपन की, तलाश ख़त्म कर
ख़ुद को तलाशता हूं, मेरे में अकेला मैं
कोई सूफ़ी किसी मुर्शद का दीवाना रहा होगा
अब हूं 'कमल' उसके डेरे में अकेला मैं
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कवि - मुकेश कमल
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