नफ़रत की खोले बैठे है - दुकान कौन है।
सच बोलना हाकिम को गंवारा नहीं यहां,
खामोश है आवाम - बेजुबान कौन है।
क्यों मसला जा रहा है - कलियों, फूलों को बेवजह,
तितली तेरे गुलशन का बागबान कौन है।
हरे और भगवे रंग में देश को ये बांटने वाले,
तू इनके खूनी मंसूबे - पहचान कौन है।
किसी भी हाल में तुझको कभी मायूस ना देखा,
तेरे होठों से 'कमल' ले गया मुस्कान कौन है।
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कवि - मुकेश कमल
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