शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

पल्ला झाड़ डाला है


जो ना हो सका अब तक
अब ना होने वाला है,
इतना कहके उस शख़्स ने
पल्ला झाड़ डाला है।

घुटने टेक देता है
आगे जो हालातों के,
उसके लिए इक टीला
जैसे इक हिमाला है।

मजहबों के झगड़े में
क्या है खोया क्या पाया,
कहीं टूटी मस्ज़िद है
कहीं पे शिवाला है।

खुशियां लानी पड़ती है
खरीद के बाजारों से,
किसी की दीवाली है
किसी का दीवाला है।

रोशनी ना दे शायद
मंजिल बताता है,
वो दीये की लौ का जो
मद्धम उजाला है।

हुकुमरानी तेरी भी
कुछ दिनों की मेहमा है,
वो भरम भी टूटेगा
जिस भरम को पाला है।

कैसे इस हुक़ूमत से
पूछेगा सवाल कोई,
कलम पे शिकंजा है
ओर जुबां पे ताला है।
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कवि - मुकेश कमल
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