छोटी सी बात पर
सुहागरात पर
घूँघट करने को कहा तो
बीवी हुई नाराज़
आजकल बकवास हो गया
पहले होता था लाज़
पूछा हमने उससे घूँघट
ना करने का राज़
बोली ' चुनरी सर पर रखती
होती सर में खाज़
ये सुन मेरे मूँह से अचानक
कुछ ऐसा निकल गया
जिससे सुहागरात का सारा
वातावरण बदल गया
मैंने कहां 'भाग्यवान
चुनरी का दोष नहीं
लगता है तुम्हारे सिर में
जूएं पड़ गयी
मज़ाक में इतना कहते ही
श्रीमती मुझ पर राशन पानी
लेकर चढ़ गयी
बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ी की
तलाक़ तक बढ़ गयी
मैं कौशिश कर रहा था कि
सामान्य हो हालात
वर्ना मिट्टी में मिल जायेगी
आज ये सुहागरात
मैं उससे बोला
करने को डैमेज कण्ट्रोल
माय डिअर बेबी डॉल
आई लव यू
माय हार्ट, माय सोल
मैं तो तुम्हे सभ्य बनाना चाहता था
इस ज़ालिम ज़माने की नज़र ना लगे
इसलिए घूँघट करवाना चाहता था
मेरी हुस्नपरी बिन घूँघट तुम्हे देखकर
हर कोई पागल बावला हो जाएगा
ओर सीधी धूप में तुम्हारा ये
सलोना रंग सांवला हो जायेगा
डॉर्लिंग जिस समाज में हम रहते है
उसके भी कुछ क़ानून-क़ायदे है
अरे तुम क्या जानो घूँघट करने से
औरत को क्या क्या फ़ायदे है
घूँघट करने से छेड़ता कोई मवाली नहीं
प्रदूषण के कारण चमड़ी पड़ती काली नहीं
जानू घूँघट हमारी सदियों की परंपरा है
इसकी बुनियाद मैंने आज तो डाली नहीं
घूँघट चेहरे के दाग-धब्बे छुपाता है
बुज़ुर्गों की नज़र में सँस्कारी बनाता है
सुहागरात पर घूँघट का रिवाज़ होता है
दूल्हा अपनी दुल्हन का घूँघट उठाता है
फिल्मो में भी तो गाने है
बॉलीवुड भी घूँघट को माने है
घूँघटे में चंदा है फिर भी है फैला
चारों और उजाला
होश ना खो दे कही
जोश में देखने वाला
जोश सुन दुल्हन में आ गया जोश
शत्रुघ्न सिन्हा सी दहाड़कर बोली खामोश
मैं तुम्हारी तरह रूढ़िवादी नहीं
आजकल की आधुनिक नारी हूँ
और तुम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तमो
पर मैं अकेली ही भारी हूँ
अरे उजड़े-चमन,
नज़ारे बहार के देखो
सति-सावित्री छोड़ो,
हम है राही प्यार के देखो
उसमें आमिर खान कहता है
घूँघट की आड़ से दिलबर का
दीदार अधूरा रहता है
जब तक ना पड़े आशिक़ की नज़र
श्रृंगार अधूरा रहता है
मेरे साथ निभानी है तो
फैशनेबल इंसान बनो
मैं ऑलरेडी जूही चावला हूँ
अब तुम आमिर खान बनो
मैं उस जूही चावला में
अपने ख्वाबों की
दुल्हन तलाश कर रहा हूँ
दिलीप कुमार की सोच के साथ
आमिर खान होने का प्रयास कर रहा हूँ
ये घूँघट सुहागरात पर ही
तलाक़ करवा देता
अब धीरे धीरे मरूँगा
ये तो रात ही मरवा देता
श्रीमति सही कहती है
ये घूँघट लाज़-शर्म सब बेकार है
साड़ी-सूट नही जीन्स चलती है
फैशनेबल संसार है
लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423
बीवी हुई नाराज़
आजकल बकवास हो गया
पहले होता था लाज़
पूछा हमने उससे घूँघट
ना करने का राज़
बोली ' चुनरी सर पर रखती
होती सर में खाज़
ये सुन मेरे मूँह से अचानक
कुछ ऐसा निकल गया
जिससे सुहागरात का सारा
वातावरण बदल गया
मैंने कहां 'भाग्यवान
चुनरी का दोष नहीं
लगता है तुम्हारे सिर में
जूएं पड़ गयी
मज़ाक में इतना कहते ही
श्रीमती मुझ पर राशन पानी
लेकर चढ़ गयी
बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ी की
तलाक़ तक बढ़ गयी
मैं कौशिश कर रहा था कि
सामान्य हो हालात
वर्ना मिट्टी में मिल जायेगी
आज ये सुहागरात
मैं उससे बोला
करने को डैमेज कण्ट्रोल
माय डिअर बेबी डॉल
आई लव यू
माय हार्ट, माय सोल
मैं तो तुम्हे सभ्य बनाना चाहता था
इस ज़ालिम ज़माने की नज़र ना लगे
इसलिए घूँघट करवाना चाहता था
मेरी हुस्नपरी बिन घूँघट तुम्हे देखकर
हर कोई पागल बावला हो जाएगा
ओर सीधी धूप में तुम्हारा ये
सलोना रंग सांवला हो जायेगा
डॉर्लिंग जिस समाज में हम रहते है
उसके भी कुछ क़ानून-क़ायदे है
अरे तुम क्या जानो घूँघट करने से
औरत को क्या क्या फ़ायदे है
घूँघट करने से छेड़ता कोई मवाली नहीं
प्रदूषण के कारण चमड़ी पड़ती काली नहीं
जानू घूँघट हमारी सदियों की परंपरा है
इसकी बुनियाद मैंने आज तो डाली नहीं
घूँघट चेहरे के दाग-धब्बे छुपाता है
बुज़ुर्गों की नज़र में सँस्कारी बनाता है
सुहागरात पर घूँघट का रिवाज़ होता है
दूल्हा अपनी दुल्हन का घूँघट उठाता है
फिल्मो में भी तो गाने है
बॉलीवुड भी घूँघट को माने है
घूँघटे में चंदा है फिर भी है फैला
चारों और उजाला
होश ना खो दे कही
जोश में देखने वाला
जोश सुन दुल्हन में आ गया जोश
शत्रुघ्न सिन्हा सी दहाड़कर बोली खामोश
मैं तुम्हारी तरह रूढ़िवादी नहीं
आजकल की आधुनिक नारी हूँ
और तुम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तमो
पर मैं अकेली ही भारी हूँ
अरे उजड़े-चमन,
नज़ारे बहार के देखो
सति-सावित्री छोड़ो,
हम है राही प्यार के देखो
उसमें आमिर खान कहता है
घूँघट की आड़ से दिलबर का
दीदार अधूरा रहता है
जब तक ना पड़े आशिक़ की नज़र
श्रृंगार अधूरा रहता है
मेरे साथ निभानी है तो
फैशनेबल इंसान बनो
मैं ऑलरेडी जूही चावला हूँ
अब तुम आमिर खान बनो
मैं उस जूही चावला में
अपने ख्वाबों की
दुल्हन तलाश कर रहा हूँ
दिलीप कुमार की सोच के साथ
आमिर खान होने का प्रयास कर रहा हूँ
ये घूँघट सुहागरात पर ही
तलाक़ करवा देता
अब धीरे धीरे मरूँगा
ये तो रात ही मरवा देता
श्रीमति सही कहती है
ये घूँघट लाज़-शर्म सब बेकार है
साड़ी-सूट नही जीन्स चलती है
फैशनेबल संसार है
लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423
dil ko cho gaya…waah waah waah!!!
जवाब देंहटाएंvery nice this website i like it .. and for more shayari and poetry plz visit this site http://www.meridileshayari.com/
जवाब देंहटाएंGood Poetry
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मस्त है मुकेश जी। बहुत ख़ूब।
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