इस क़ब्र में कुछ प्यार के अरमान दफ़न है
चाहत की लाश पे - नफरत का क़फ़न है ॥
महफ़िल में कर रहे है शमां बनके रोशनी
जलने का जलाने का आता जिन्हें फन है ॥
तितलियों से भंवरों से कह दो बाहर से
गुल की तमन्ना ना करें ये उजड़ा चमन है ॥
हर वक़्त बस नफ़ा - नुक्सान की फ़िक़्र
दौलत के तराज़ू में इंसान का मन है ॥
दिल को भी तोड़ देना, वादे भी तोड़ देना
छोड़िये साहब ये आजकल दुनियां का चलन है ॥
कुछ खफ़ा है कुछ ने रंज़िश भी रखी है उससे
सच बोलता है 'कमल' उसकी बातों में वज़न है ॥
लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423
चाहत की लाश पे - नफरत का क़फ़न है ॥
महफ़िल में कर रहे है शमां बनके रोशनी
जलने का जलाने का आता जिन्हें फन है ॥
तितलियों से भंवरों से कह दो बाहर से
गुल की तमन्ना ना करें ये उजड़ा चमन है ॥
हर वक़्त बस नफ़ा - नुक्सान की फ़िक़्र
दौलत के तराज़ू में इंसान का मन है ॥
दिल को भी तोड़ देना, वादे भी तोड़ देना
छोड़िये साहब ये आजकल दुनियां का चलन है ॥
कुछ खफ़ा है कुछ ने रंज़िश भी रखी है उससे
सच बोलता है 'कमल' उसकी बातों में वज़न है ॥
लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423
Keep it up.
जवाब देंहटाएंKeep it up.
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