ना पूछों मैं कैसे जिया ज़िन्दगी
तबाह यूं ही अपनी किया ज़िन्दगी ॥
सिर्फ एक घूँट अमृत की ख़ातिर
ज़हर ता-उम्र है पिया ज़िन्दगी ॥
जो था पास सब कुछ लुटाता गया
दिया सबको कुछ ना लिया ज़िन्दगी ॥
जिस-जिस पे मैंने भरोसा किया
दगा मुझको उसने दिया ज़िन्दगी ॥
हँसी मेरे लब से चुरा ले गया वो
मुझे दे गया सिसकियां ज़िन्दगी ॥
जो ज़हन में था 'कमल' मैं लिखता गया
अब है ये मेरी डायरियाँ ज़िन्दगी ॥
लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423
तबाह यूं ही अपनी किया ज़िन्दगी ॥
सिर्फ एक घूँट अमृत की ख़ातिर
ज़हर ता-उम्र है पिया ज़िन्दगी ॥
जो था पास सब कुछ लुटाता गया
दिया सबको कुछ ना लिया ज़िन्दगी ॥
जिस-जिस पे मैंने भरोसा किया
दगा मुझको उसने दिया ज़िन्दगी ॥
हँसी मेरे लब से चुरा ले गया वो
मुझे दे गया सिसकियां ज़िन्दगी ॥
जो ज़हन में था 'कमल' मैं लिखता गया
अब है ये मेरी डायरियाँ ज़िन्दगी ॥
लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423
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