मूँछ नही तो कुछ नहीं ठीक सयाने कहते
कदर नहीं हैं उनकी जो हैं बिन मूँछों
के रहते
रौब बढ़ाती मूँछ के बंदा डर जाता हैं
मूँछ ऐंठता हुआ कोई जब घर आता हैं
मूँछमुंडो को नहीं जगत में कोई पूछें
शान निराली उनकी मुख पर जिनके मूँछें
मित्र मेरे ने मूँछ . रक्खी तो ऐसी रक्खी
जैसे नाक के नीचे बैठी हो एक मक्खी
बोला मैं चड्डा जी आपकी मूँछ हैं कैसी
कहता मूँछ हैं मेरी चार्ली चॅप्लिन
जैसी
चार्ली चॅप्लिन जैसी मूँछ ना मुख पर
साजे
डंके जैसी मूँछ हैं जिनकी उनका डंका
बाजे
मूँछे हैं मुखमंडल पर मर्दों की निशानी
मूँछों वाले घरवाले से डरे जनानी
गुंडे-लुच्चे देखके तीखी मूँछ को भागे
और मूँछमुंडे देख दबाकर पुंछ को भागे
इसीलिए तो मूँछ की महिमा गायी हमने
पता नहीं जाने क्यूँ मूँछ कटाई हमने
लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423
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