गुरुवार, 12 जनवरी 2017

आपकी मूँछ हैं कैसी


मूँछ नही तो कुछ नहीं ठीक सयाने कहते
कदर नहीं हैं उनकी जो हैं बिन मूँछों के रहते

रौब बढ़ाती मूँछ के बंदा डर जाता हैं
मूँछ ऐंठता हुआ कोई जब घर आता हैं

मूँछमुंडो को नहीं जगत में कोई पूछें 
शान निराली उनकी मुख पर जिनके मूँछें

मित्र मेरे ने मूँछ . रक्खी तो ऐसी रक्खी
जैसे नाक के नीचे बैठी हो एक मक्खी

बोला मैं चड्डा जी आपकी मूँछ हैं कैसी
कहता मूँछ हैं मेरी चार्ली चॅप्लिन जैसी

चार्ली चॅप्लिन जैसी मूँछ ना मुख पर साजे
डंके जैसी मूँछ हैं जिनकी उनका डंका बाजे

मूँछे हैं मुखमंडल पर मर्दों की निशानी
मूँछों वाले घरवाले से डरे जनानी

गुंडे-लुच्चे देखके तीखी मूँछ को भागे
और मूँछमुंडे देख दबाकर पुंछ को भागे

इसीलिए तो मूँछ की महिमा गायी हमने
पता नहीं जाने क्यूँ मूँछ कटाई हमने

लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423

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