कौशिशें तुझको भुलाने की
तमाम ना-कामयाब हो गयी
कल हक़ीकत में साथ थी तुम
आज कैसे ख़्वाब हो गयी
तुझको चाहना भी इक ख़ता थी
गलतियां बे-हिसाब हो गयी
तस्वीर रखी थी संभाले जिसमें
रात गुम वो किताब हो गयी
हम सवालों से बचते फिरते
ओर तुम हाज़िर-ज़वाब हो गयी
ज़ाम सा दिल हमारा तोड़ा
जाने कैसी शराब हो गयी
तुम हमको काँटा करार देकर
आप खिलता गुलाब हो गयी
दास्तान ना बनी 'कमल' ये
ये कहानी ख़राब हो गयी
लेख़क (कवि ),
मुकेश 'कमल'
09781099423
तमाम ना-कामयाब हो गयी
कल हक़ीकत में साथ थी तुम
आज कैसे ख़्वाब हो गयी
तुझको चाहना भी इक ख़ता थी
गलतियां बे-हिसाब हो गयी
तस्वीर रखी थी संभाले जिसमें
रात गुम वो किताब हो गयी
हम सवालों से बचते फिरते
ओर तुम हाज़िर-ज़वाब हो गयी
ज़ाम सा दिल हमारा तोड़ा
जाने कैसी शराब हो गयी
तुम हमको काँटा करार देकर
आप खिलता गुलाब हो गयी
दास्तान ना बनी 'कमल' ये
ये कहानी ख़राब हो गयी
लेख़क (कवि ),
मुकेश 'कमल'
09781099423
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