बुधवार, 4 जनवरी 2017

मन के महासागर में

मन के महासागर में 
ख़्यालों की नांव 
चल रही है 
बिन मांझी 
बिन पतवार 
लहरों के थपेड़ों से 
डोलते ख़्याल 
चुपचाप 
बोलते ख़्याल 
जो अपने आप आते 
कभी नहीं भी आते 
कभी सही भी होते 
कभी नहीं भी होते 
पर 
ख़्यालों का प्रवाह 
जीवन का प्रवाह 
होता है 
ख़्याल 
जो बताते  है 
की अभी 
दिल नें धड़कना 
बंद नहीं किया 
धड़कनों का साज़ 
छेड़ रहा है 
नई स्वरलहरियाँ 
धड़कनें जिनसे है नाता  
गहरा ख़्यालों का 
धड़कनें जो देती है 
पहरा ख्यालों  का 
धड़कन हर-क्षण  
देती है 
ख़्याल को जन्म 
ख़्याल 
जिसमें हम 
कई बार 
ऐसे खो जाते है 
कुछ देर ही सही 
ख़ुद से भी 
दूर हो जाते है 
ख्याल रूपी 
नाँव पर सवार 
हक़ीक़त रूपी  
किनारों की तलाश में 
भटकते है 
डगमगाते है 
लड़खड़ाते है 
डरते भी है 
लहरों से
लड़ते भी है 
कभी धैर्य बंधाते है 
कभी डूब भी जाते है 
बीच मझधार 
कभी प्रयत्न संघर्ष से 
लग जाते पार

मन के महासागर में
ख्यालों की नाँव  
मन के 
महासागर में........ 

लेख़क (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423 









1 टिप्पणी:

  1. बहुत बढ़िया मुकेश कमल जी। आपकी लेखनी काबिले तारीफ है जी।

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