मेरे चमन के जुग्नुओं ने टिमटिमाना छोड़कर
कर लिया धारण अंधेरा जगमगाना छोड़कर
पछता रहे है आके शहर की इमारतों में
अपने गाँव का वो कच्चा घर पुराना छोड़कर
सन्यास को बदनाम कर डाला पाखंडी साधुओं ने
बना रहे है चेलियां चेले बनाना छोड़कर
मंगल के दिन हनुमान जी का व्रत जो रखते है
फल-फ्रूट डटके खाते है उस दिन वो खाना छोड़कर
चुग गये है मोती कौवें, मोतियों की लालसा में
हंस भूखें मर रहे है तिनका-दाना छोड़कर
नींद तेरी आंखों से क्यों है ‘कमल’ ख़फा-ख़फा
आंसू दे गये कहाँ पे, ख़्वाब आना छोड़कर
लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414
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