मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

गुदगुदी करके हंसा करना

मर्ज़ दिया हैं तो, मर्ज़ की दवा करना
जाके मस्ज़िद में, मेरे लिए दुआ करना

तब पता लगेगा, जब आशियाँ जलेगा
हैं बड़ा आसान, शोलों को हवा करना

बेवफा लोगो की यहाँ, कमी नहीं कोई
भूल गये हैं यहाँ, सब प्यार वफ़ा करना

घर नहीं क्या हुआ, दिल में रहा करना
जगह पसंद ना आए, आँखों से बहा करना

ए सितमगर ये सितम की, इंतेहाँ हैं अब
अपनो से छुपा करना, गैरों से मिला करना

दगाबाज़ो की तो, फ़ितरत ही होती हैं दगा
वो छोड़ नहीं सकते, हैं कभी दगा करना

हँसना चाहोगे 'कमल' तो हँसी आएगी नहीं
आज के बाद गुदगुदी करके हंसा करना
                     
लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423

सुर्ख़ मेहँदी हाथों पे रची है

सुर्ख़ जोड़े में लिपटी हुई चांदनी है
मेरे घर में आई नई रौशनी है
चेहरा छुपा रही है घूँघट की आड़ में
उसके लबों लेकिन मासूम सी हँसी है
लाली लाल रंग की बिखरी है चहुँओर
क्या ख़ूब सुर्ख़ मेहँदी हाथों पे रची है
गुलशन में मेरे आई है बहार झूम के
फूलों की सेज़ पे नाज़ुक सी कली है
बरसों से था हमें जिस पल का इंतज़ार
मुद्दत के बाद आई अब वो घड़ी है
बिन शराब के ही नशा सा छा गया
कुछ गाल गुलाबी है कुछ नैन शराबी है
अरमाँ हमारे दिल के सभी पूरे हो गये
क़ुदरत से क्या हसीं सौग़ात मिली है
रेगिस्तान सा जीवन जी रहा था अबतक
अब बहने लगी इसमें 'कमल' प्रेम नदी है
लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल,

09781099423

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

हसबैंड क्या होता है

भागवंती ने लाजवंती से पूछा
अरी लाजो 
ये हसबैंड क्या होता है,
लाजवंती लज्जाकर बोली
अरे भोली
ये एक तरह का बैन्ड ही तो होता है,
इसकी हँसी गायब रहती हैं
ये बैंड कभी कभी हंसता 
और हमेशा रोता है,
पगली 
शादी पर इस बैंड को भी
खूब सजाया-धजाया जाता है,
और ये बैंड 
बैंडमास्टर बीवी द्वारा
जीवनभर 
बेलन से बजाया जाता है.

लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल’
9781099423


गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

आरती पत्नी प्यारी की

आरती पत्नि प्यारी की
सास की राजदुलारी की

मायके में फिरती इतराती-मियां को नखरे दिखलाती
इठ्लाती और लहराती, 
चले तनके-माधुरी बनके
तीखी तेज़ कटारी की
सास की राजदुलारी की

ना माने बात पति की है, लगे ये बिना मति की
हमारी दुर्गति की है, 
करूं में क्या-दवा तो बता
इस सरदर्द बीमारी की
सास की राजदुलारी की

ये मेकअप की दीवानी है, कुमोलिका की ये नानी है
हिट्लर मेरी जनानी है, 
सदा अकड़े-सदा झगड़े
आफत भरी पिटारी की
सास की राजदुलारी की

रहती  है टी.वी में डूबी, ये मेरी जानी मेहबूबी 
अज़ूबा है या अज़ूबी, 
मेरी बीवी-है-या टी.वी
स्टार-प्लस की मारी की
सास की राजदुलारी की

झाड़ू मुझसे लगवाती, बर्तन मुझसे मंजवाती
खाना भी मुझसे पकवाती, 
पावभाजी-बनादो नाजी
कहे ताज़ी तरकारी की
सास की राजदुलारी की

फंस गया हूँ शादी करके, छूटेगा अब पीछा मरके
कपड़े धोये टब भरके, 
साड़ी सलवार-धोवे है यार
कमल तो अपनी नारी की
सास की राजदुलारी की

लेखक (कवि),
मुकेश कमल

9781099423

बुधवार, 14 दिसंबर 2016

शहर

हर रोज बुलंदी पे हैं चढ़ता रहा शहर
गावों को ख़तम कर गया बढ़ता रहा शहर,

जंगल ज़मीन जल पहाड़ों की चौटियों पे
बेरोक टोक देखिए चढ़ता रहा शहर,

प्रदूषण का ज़हर शहर पे कहर ढा रहा
विकास के कसीदे पर पढ़ता रहा शहर,

ऊँची ऊँची बिल्डिंगे शीशे की कोठियाँ
पत्थर पे भविष्य को हैं गढ़ता रहा शहर,

मज़दूर जिसने इसको पसीने से हैं सींचा
हैं उसकी झोपड़ी पे बिगड़ता रहा शहर,

फैशन की हवा पीढ़ियों को आगे ले गयीं
संस्कार संस्कृति में पिछड़ता रहा शहर,

रोज़ीरोटी के लिए 'कमल' जो भी यहा आया
उसको ही मोहपाश में जकड़ता रहा शहर.

लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423

लाजो लवली हो जाएगी

आँख खोलकर रहना देखते लाजो लवली हो जाएगी
अपने देश की संस्कृति अमेरिका में खो जाएगी

अँग्रेज़ी भाषा हैं बोलती नही बोलती हिन्दी
क्रीम पाउडर बहुत लगाती नहीं लगाती बिंदी
नागिन सी चोटी कटवा कर बेबी कट करवाएगी
अपने देश की संस्कृति अमेरिका में खो जाएगी

बड़े बुज़ुर्गो की इज़्ज़त की बात ही छोड़ो यारो
ससुर के सामने से निकलेगी पतलून पहन कर पारो
ऐसा करके वो हमको दिन में तारे दिखलाएगी
अपने देश की संस्कृति अमेरिका में खो जाएगी

सत्तर साल की बुढ़िया देखो काले करके अपने बाल
जींस पहनकर चलती हैं वो हिरनी जैसी चाल
होठों को करके लाल हमें वो नखरें बड़े दिखाएगी
अपने देश की संस्कृति अमेरिका में खो जाएगी

समय अनूठा आया यारो इज़्ज़त मान रहा ना बाकि
नमस्ते राम राम सब भूली हेलो हाये करती काकी
बेटा बाप को बुड्ढ़ा बोले बेटी माँ को मॉम बुलाएगी
अपने देश की संस्कृति अमेरिका में खो जाएगी

साड़ीसूट को भूली हैं सब मिनी स्कर्ट जींस का राज हैं
रात को पिक्चर जाने से रोका तो बेटी हुई नाराज़ हैं
खुद बाहर जो गयी नहीं बॉयफ्रेंड को घर बुलाएगी
अपने देश की संस्कृति अमेरिका में खो जाएगी

पूजापाठ व्रत का होगा ख़ात्मा पत्नी पति से रोज लड़ेगी
करवाचौथ से पहले ही श्रीमती जी की भूख बढ़ेगी
तब करवाचौथ श्रीमान रखेंगे श्रीमती फैलकर सो जाएगी
अपने देश की संस्कृति अमेरिका में खो जाएगी

लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423 

रिश्ता भी मज़ाक भी गाली भी


एक घरवाला होता एक घरवाली होती
घरवाले को प्यारी लेकिन साली होती

साली चाहे गोरी हो, या काली होती
जैसी भी हो वो चम्पा की डाली होती

सब कहते, साली आधी घरवाली होती
पूरी होती तो दिन रात दिवाली होती

जीजा साली में जब जब कव्वाली होती
साली के गालों पे तब तब लाली होती

खुशनसीब जिनकी साली मतवाली होती
बीवी कप चाय, वो कॉफी की प्याली होती

बड़े चाव से कमल सासू ने पाली होती
रिश्ता भी होती, मजाक भी और गाली होती

लेखक (कवि),
मुकेश कमल
09781099423