मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

सुर्ख़ मेहँदी हाथों पे रची है

सुर्ख़ जोड़े में लिपटी हुई चांदनी है
मेरे घर में आई नई रौशनी है
चेहरा छुपा रही है घूँघट की आड़ में
उसके लबों लेकिन मासूम सी हँसी है
लाली लाल रंग की बिखरी है चहुँओर
क्या ख़ूब सुर्ख़ मेहँदी हाथों पे रची है
गुलशन में मेरे आई है बहार झूम के
फूलों की सेज़ पे नाज़ुक सी कली है
बरसों से था हमें जिस पल का इंतज़ार
मुद्दत के बाद आई अब वो घड़ी है
बिन शराब के ही नशा सा छा गया
कुछ गाल गुलाबी है कुछ नैन शराबी है
अरमाँ हमारे दिल के सभी पूरे हो गये
क़ुदरत से क्या हसीं सौग़ात मिली है
रेगिस्तान सा जीवन जी रहा था अबतक
अब बहने लगी इसमें 'कमल' प्रेम नदी है
लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल,

09781099423

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