शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

मेरे चाँद मेरा यक़ीन तो कर

जलने लगा है चाँद हुस्नो-शबाब से
देखा करो ना आईना कहदो ज़नाब से

है  ख़ुद गुलाब  जानम ये सुर्ख़ होंठ तेरे
इनको क्यों रंग डाला है तुमने गुलाब से

जिस तरफ पड़ी  मदहोश सी  नज़र तेरी
वहीँ ज़ाम लग गए है छलकने शराब से

ऐ मेरे चाँद तू मेरा यक़ीन  तो कर
जलवा नहीं है कमतर तेरा आफ़ताब से 

 एहसान होगा तेरा ये  'कमल' पे बड़ा
चेहरा निकालो तुम जरा ज़ालिम नक़ाब से  

लेख़क (कवि ),

मुकेश 'कमल'
09781099423  

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