आरती पत्नि प्यारी की
सास की राजदुलारी की
मायके
में फिरती इतराती-मियां को नखरे दिखलाती
इठ्लाती
और लहराती,
चले तनके-माधुरी बनके
तीखी
तेज़ कटारी की
सास की राजदुलारी की
ना माने
बात पति की है, लगे ये बिना मति की
हमारी
दुर्गति की है,
करूं में क्या-दवा तो बता
इस
सरदर्द बीमारी की
सास की राजदुलारी की
ये
मेकअप की दीवानी है, कुमोलिका की ये
नानी है
हिट्लर
मेरी जनानी है,
सदा अकड़े-सदा झगड़े
आफत भरी
पिटारी की
सास की राजदुलारी की
रहती है टी.वी में डूबी, ये मेरी जानी
मेहबूबी
अज़ूबा
है या अज़ूबी,
मेरी बीवी-है-या टी.वी
स्टार-प्लस
की मारी की
सास की राजदुलारी की
झाड़ू
मुझसे लगवाती, बर्तन मुझसे मंजवाती
खाना भी
मुझसे पकवाती,
पावभाजी-बनादो नाजी
कहे
ताज़ी तरकारी की
सास की राजदुलारी की
फंस गया
हूँ शादी करके, छूटेगा अब पीछा मरके
कपड़े
धोये टब भरके,
साड़ी सलवार-धोवे है यार
‘कमल’ तो
अपनी नारी की
सास की राजदुलारी की
लेखक
(कवि),
मुकेश ‘कमल’
9781099423
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