सोमवार, 5 दिसंबर 2016

जुल्मी खारिश

इश्क का रोग लगा हैं, ये कैसे पता चलता हैं,
रोगी को नींद आए ना पड़ा करवट बदलता हैं.

ना हैं मुकाबले में इसके टाइफाइड,शुगर, मलेरिया,
कॅन्सर एड्स से भी घातक बीमारी लोवेरिया.

हो कितना बड़बोला वो खामोश लगता हैं,
इश्क का रोगी शेर भी खरगोश लगता हैं,

अगर लग जाए पहलवान को वो भूलता कुश्ती,
समझदार के भी भेजे में कोई बात ना घुसती
,
ना लगता मान पढ़ाई में किताबें बंद मिलती हैं,
खुले किताब तो फूलों की उसमे गंध मिलती हैं.

फूल के संग रखता हैं वो माशूक की तस्वीर,
खुद को रांझा कहता हैं कहे माशूक को वो हीर.

दवा इसकी हैं या तो मौत हैं या वसलें -यार हैं,
नाम इस बीमारी के मुहहब्त, इश्क, प्यार हैं.

रहना बचके सदा 'कमल' की बस इतनी गुज़ारिश हैं,
नहीं रिंग गार्ड से मिटती ये ऐसी जुल्मी खारिश हैं.

लेखक (कवि)

मुकेश 'कमल'
09781099423

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