रविवार, 30 अक्तूबर 2016

मन्नत नहीं माँगी



कौन कहता है की हमने, मन्नत नहीं माँगी
खुदा से तुझको माँगा था, जन्नत नहीं माँगी

चाहते थे मिल जाए तेरे दिल में एक कोना
करने के लिए हुकूमत तो रियासत नहीं माँगी

दिल के मंदिर में बिठाकर, पूजा करें तेरी
किसी और की तो हमने, इबादत नहीं माँगी

तेरे सामने हम इश्क की कर पाए पैरवी
ना माँगा कोई वकील वकालत नहीं माँगी

तेरे साथ जियुं और, तेरे साथ मरूं मैं
हर हाल खुश हूँ शानो,-शौकत नहीं माँगी

कमल' को पल भर को तेर, प्यार मिल जायें
ता-उम्र तो उसने तेरी चाहत नही माँगी

लेखक (कवि)
मुकेश 'कमल'
09781099423

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