शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

चिंतित हैं आदमी


शोषण के जुर्म में यूँ ही आरोपित है आदमी
औरत नहीं है शोषित, शोषित है आदमी

झूठे दहेज केसो की तारीख पे तारीख
हिरासत में ज़मानत से भी वंचित है आदमी

हाथ तो है दूर ज़ुबान भी नहीं चलती
नारी के आगे चारों खाने चित आदमी

दिन रात कमा इसके लिए गधे की तरह
काम करते करते होता, मूर्छित है आदमी

हो जाए ना सरेराह रुसवा 'कमल' कहीं
बदनामियों के डर से, चिंतित है आदमी

लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423 

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