शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

अंधेरा

दीप तु चलना जलाते, कुछ तो कम होगा अंधेरा
कुछ तो होगी रोशनी, अब तलक भोगा अंधेरा

रोशनी सच्चाई है, और है बस धोखा अंधेरा
उतना बढ़ता जाएगा, जितना है रोका अंधेरा

आँख खोलो देख लो, अब कहाँ जो था अंधेरा
आँख में होता नहीं, दिल में हैं होता अंधेरा

रात भर हैं जागता, दिन में हैं सोता अंधेरा
शम्मा तो रोती हैं 'कमल', साथ हैं रोता अंधेरा

लेखक (कवि)
मुकेश 'कमल' 
09781099423 

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