लक्ष्य सम्मुख हैं बहुत पर एक तुझको
चुनना होगा
अपना आशियाँ ऐ बंदे खुद तुझे ही बुनना
होगा
हर एक खींचेगा, अपनी ही, और तुझको प्यारे
करना तू अपने मन की, कहना सभी का
सुनना होगा
काया बनानी हैं तुझे गर कुंदन के जैसे
अपनी भी
कुंदन के जैसे ही तुझे अग्नि में जलना
भुनना होगा
हाथ पर धर हाथ यधपि, तुम यूँ ही बैठे
रहोगे
यूँ ही बैठे रहने से तो काम कोई कुछना
होगा
ये ज़माना जीने देता, हैं किसे कब चैन
से
तूँ ना जब तक बोलेगा तक जमाना चुपना
होगा
जब जला लेगा दिया तू हौंसले का अपने मन
में
तेरी इस पावन शमां से क्योंकर अंधेरा
कम ना होगा
ज़ुल्म का जो सिलसिला अब तक चला आता
रहा
हो चुकी हैं इंतेहाँ उसको 'कमल' अब थमना होगा
लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
097810099423
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