साली
कोई भी चलेगी, पर छोटी का क्या कहना
अरे जैसी
भी हो प्यारी,
होती है बीवी की बहना
शर्म
बड़ी से आये,
छोटी संग ठिठोली होती
जीजा जी की शानदार, ससुराल में होली होती
छोटी साली का नखरा और, उसकी चुहलबाज़ी
अच्छा लगता है सुनना, उसके मुख से जीजाजी
होती है ससुराल की रौनक,प्यारी छोटी साली
क्या पड़ता है फर्क अरे, वो गोरी हो या काली
जीजा साली का होता है, हंसी मज़ाक का रिश्ता
बड़ी हो तो है मूंगफली, और छोटी हो तो पिश्ता
बड़ी साली है सख्त छुहारा, छोटी नर्म खज़ूर
बड़ी भी हो पर, छोटी साली होये जरूर
‘कमल’ नहीं छोटी साली, टाईम ना वेस्ट करेंगे
अरे सास-ससुर से उसके, लिये रिक्वेस्ट करेंगे
लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
09781099423
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