मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

गुदगुदी करके हंसा करना

मर्ज़ दिया हैं तो, मर्ज़ की दवा करना
जाके मस्ज़िद में, मेरे लिए दुआ करना

तब पता लगेगा, जब आशियाँ जलेगा
हैं बड़ा आसान, शोलों को हवा करना

बेवफा लोगो की यहाँ, कमी नहीं कोई
भूल गये हैं यहाँ, सब प्यार वफ़ा करना

घर नहीं क्या हुआ, दिल में रहा करना
जगह पसंद ना आए, आँखों से बहा करना

ए सितमगर ये सितम की, इंतेहाँ हैं अब
अपनो से छुपा करना, गैरों से मिला करना

दगाबाज़ो की तो, फ़ितरत ही होती हैं दगा
वो छोड़ नहीं सकते, हैं कभी दगा करना

हँसना चाहोगे 'कमल' तो हँसी आएगी नहीं
आज के बाद गुदगुदी करके हंसा करना
                     
लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423

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