शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

मैं हूँ मरुस्थल

क्या है दूसरा और मुझसा कोई 
मैं वो हूँ जिसको ना समझा कोई ॥ 

मैं किसको जाकर के अपना कहूँ 
नहीं है यहाँ मेरा अपना कोई ॥ 

मैं हूँ वो मरुस्थल जहां पर कभी 
ना बादल का टुकड़ा है बरसा कोई ॥ 

बस प्यार के चंद लफ़्ज़ों की ख़ातिर 
ना जितना मेरे और तरसा कोई ॥ 

मैंने ढूँढा बहुत पर मिला ना 'कमल'
बड़ा दुःख मुझे मेरे दुःख सा कोई ॥ 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

ये मेरी डायरियाँ ज़िन्दगी

ना पूछों मैं कैसे जिया ज़िन्दगी 
तबाह यूं ही अपनी किया ज़िन्दगी ॥ 

सिर्फ एक घूँट अमृत की ख़ातिर 
ज़हर ता-उम्र है पिया ज़िन्दगी ॥ 

जो था पास सब कुछ लुटाता गया 
दिया सबको कुछ ना लिया ज़िन्दगी ॥ 

जिस-जिस पे मैंने भरोसा किया 
दगा मुझको उसने दिया ज़िन्दगी ॥ 

हँसी मेरे लब से चुरा ले गया वो 
मुझे दे गया सिसकियां ज़िन्दगी ॥ 

जो ज़हन में था 'कमल' मैं लिखता गया 
अब है ये मेरी डायरियाँ ज़िन्दगी ॥ 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 

सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

दुनियां का चलन

इस क़ब्र में कुछ प्यार के अरमान दफ़न है 
चाहत की लाश पे - नफरत का क़फ़न है ॥  

महफ़िल में कर रहे है शमां बनके रोशनी 
जलने का जलाने का आता जिन्हें फन है ॥  

तितलियों से भंवरों से कह दो बाहर से 
गुल की तमन्ना ना करें ये उजड़ा चमन है ॥ 

हर वक़्त बस नफ़ा - नुक्सान की फ़िक़्र 
दौलत के तराज़ू में इंसान का मन है ॥ 

दिल को भी तोड़ देना, वादे भी तोड़ देना  
छोड़िये साहब ये आजकल दुनियां का चलन है ॥ 

कुछ खफ़ा है कुछ ने रंज़िश भी रखी है उससे 
सच बोलता है 'कमल' उसकी बातों में वज़न है ॥ 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 


सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

वंश बेल की वेदी

जाने मज़बूरियां क्या उसकी रही होगी 
वो मर गयी होगी या मारी गयी होगी 

जो फंदे पर है लटकी या कि लटकाई गयी होगी 
वो बहू तुम्हारी है पर, बेटी किसी की लाडली होगी 

जिसे माँ -बाप ने धूप तक लगने ना दी होगी 
वो बेटी आग में बे-वजह तो नहीं जली होगी 

वो घर कभी सम्मान का हक़दार ना होगा 
जिस घर में घर की लक्ष्मी पर ज्यादत्ती होगी 

बेटों की चाहत में हज़ारों बेटियाँ 'कमल'
वंश बेल की वेदी पे चढ़ गयी बलि होगी 

लेख़क (कवि ),
मुकेश 'कमल'
09781099423 



सोमवार, 23 जनवरी 2017

सॉलिड उनका हाज़मा

पिता पुत्र से बोले, क्या बनोंगे बेटा
बेटा बोला होकर बड़ा बनूंगा नेता

देशसेवा करूँगा बन जनता का सेवक
लोग करेंगे मेरी आपकी प्रशंसा बेशक

नाम करूँगा रोशन नेता बन के आपका
बेटे ही तो मान बढ़ाएँ अपने बाप का

सुन बेटे की बात पिताजी हुए उदास
तुमसे मैने कितनी लगा रखी थी आस

पता नहीं था बेड़ा यूँ जाएगा गर्क में
नेता बनके भिजवाओगे हमें नर्क में

नादानी में बोल गये क्योकि बच्चे हो
बन नहीं सकते नेता बेटा तुम सच्चे हो

लोकतंत्र ओर प्रजातंत्र को भस्म किए जा
राजनीति का मूलमंत्र सब हज़्म किए जा

मदिरा माँस ना खाते तुम हो शाकाहारी
लेकिन कुछ भी ना छोड़े नेता व्यभिचारी

वो खाते पशुचारा सॉलिड उनका हाजमा
बेटा तुम तो नहीं पचा पाते हो राजमा

वो खा जाए रेल ना तुम को पचती भेल
तेरा ओर नेता का आपस में क्या मेल

सड़के सरकारी पुल ओर तोपे खा जाते हैं
शहीदों के ताबूत कफ़न भी पचा जाते हैं

बनकर बाज़ ये नेता इस समाज को नोचे
जनता की बेटी बहुओं की लाज को नोचें

हजम करे देश को खाए बिन हाज़मोला
बन सकता नही नेता क्योंकि तू हैं भोला

बेटा भूखे प्यासे ही हम दोनों जी लेंगे
जनता का नहीं खून, खुद के आँसू पी लेंगे
                                                   
लेखक (कवि) 
मुकेश 'मल'
09781099423

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

सफेद बाल

एक दिन भोला
अपने कंजूस सेठ से बोला
सेठ जी आपकी सेवा करते करते
मुझे कई साल हो गये
जो काले काले लहराते थे
वो सभी सफेद बाल हो गये
बहुत बढ़ गई है महंगाई
मगर आपने
मेरी पगार नहीं बढ़ाई
अब तो मुझपे नज़रें करम किजिये
मेरे इन सफेद बालों की शरम कीजिये
सेठ जी तनख्वाह बढ़ा दीजिये
सुरसा के मुख सी बढ़ी महंगाई है
कल ही गांव से चिट्ठी आई है
बापू को दमा हो गया है
गठिया से पीड़ित माई है
पत्नी का पांव भारी है
पांचवें बच्चे की तैयारी है
दो छोटी बहन कुंवारी है
वो भी हूज़ूर मेरी ज़िम्मेवारी है
कहते कहते भोले भोला की
आंखे भर आई, चेहरा हुआ उदास
जैसे बंज़र भूमि में सूखी घास
भोला की दयनीय हालत देख
सेठ जी हो गये भावुक
बस भोला मैं दुखी हूँ
सुनके तुम्हारा दुख
मुझे क्षमा करो मेरे भाई
मैं हूँ कितना, निर्दयी कसाई
बड़ा निष्ठुर हूँ मैं, जिसे तेरे
सफेद बालों पे दया ना आई
इतना कह्कर सेठ नें
गल्ले मे हाथ डाला
और उसमें से एक मरा सा
फटेहाल पांच का नोट निकाला
भोला को देके बोले
ले भोले
तू भी क्या याद करेगा
सेठ मिला था दिलवाला
ला इन पैसों की काली मेहंदी
करले इन बालों को काला

लेखक(कवि),
मुकेश कमल
09781099423





गुरुवार, 19 जनवरी 2017

ज़िन्दगी जल जाए ना

अपनी लगाई आग में ख़ुद, आदमी जल जाए ना 
ठहर जाओ बावलों ये, ज़िन्दगी जल जाए ना 

है चमन चिंतित बहुत इस , आज के हालात पर 
औंस की बूँदों से कही, कोई कली जल जाए ना 

आग से खेलने वालों, तुम्हारी आग से 
पीढ़ियों के मासूम बचपन की, हँसी जल जाए ना

चाँद ने गर मान ली हार इस अन्धकार से
मद्धम-मद्धम सी कही ये रोशनी जल जाए ना 

दिन ये जलता रहता है दिनभर समय की आग में 
ऐ ख़ुदा तू ख़ैर कर ये, रात भी जल जाए ना 

जलने से पहले शमा अब सोचती है ये 'कमल'
मेरे जलने से किसी की झोपड़ी जल जाये ना 

लेख़क (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423