हमारे बाद कोई रौनक-ए-महफ़िल ना पायेंगे।
गम-ए-जुदाई से शायद वाकिफ नहीं हो तुम
हम बिछड़ेंगे ऐसे-ऐसे की फिर मिल ना पायेंगे।
फ़ैसला जो भी करना है करना सोच समझकर
ये रास्ता गर बदलते हैं कभी मंजिल ना पायेंगे।
कुछ इस तरह से उजड़ा है मेरा गुलशन कि मैं
लहूं से सींचू तो भी गुल यहां अब खिल ना पायेंगे।
महफ़िल में मुझको रूसवां करके जा रहे है जो
कुछ भी करले मुझको कर हासिल ना पायेंगे।
'कमल' मैं कब्र में भी एक सुकूं के साथ सोया हूं
जब तक जिंदा है पर चैन वो कातिल ना पायेंगे।
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कवि - मुकेश कमल
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