मैं कवि हृदय वो हृदयेश्वरी
मैं सुस्त राम वो चुस्त वती
वो धर्मपत्नी मैं धर्मपति।
वो है गुलाब मैं कांटा हूं
वो मिस यू डियर मैं टाटा हूं
वो पंखुड़ियों के जैसा स्पर्श
मैं थानेदार का चांटा हूं
वो न्यू ब्रांडेड ए सी है
मैं खड़का हुआ फर्राटा हूं
वो है हिरणी सी इठलाती
मेरा चलना कछुए की गति
वो धर्मपत्नि मैं धर्मपति।
वो अमीर बाप की बेटी है
मैं एक गरीब का बेटा हूं
वो काजू कतली बर्फी है
मैं आगरे वाला पेठा हूं
वो फिट है बबीता जी जैसे
मैं गोल मोल सा जेठा हूं
मैं हूं यमदूत के दूत सा
वो रंभा मेनका और रति
वो धर्मपत्नि मैं धर्मपति।
वो न्यू फैशन की आदि है
यहां अपने तन पर खादी है
वो जींस टॉप ले स्लीवलेस
अपनी पतलून भी सादी है
वो हाई हील के सैंडिल में
ज्यों छह फीट की शहजादी है
मैं हूं प्रतीक पिछड़ेपन का
वो है पश्चिम की उन्नति
वो धर्मपत्नि मैं धर्मपति।
मेरा नाई पेड़ के नीचे है
वो बड़े सैलून को जाती है
वहां 2000 की हेयर सपा
यहां 10 में चंपी हो जाती है
मेरा आधा चांद शर्माता है
जब वो जुल्फें लहराती है
कभी हुस्न मैं उसका देखूं
कभी देखूं अपनी जेब कटी
वो धर्मपत्नि मैं धर्मपति।
है कितने अन्तर पर यारों
हम दो पंछी एक डाली के
मेरी जान फूल जिस बगिया की
सदके जाऊं उस माली के
हंस के मैं सारे नाज़ उठाऊं
इस नाज़ों से पाली के
जिससे महका मेरा घर आंगन
ये है "कमल" वो पुष्पवती
वो धर्मपत्नि मैं धर्मपति।
(मुकेश कमल)
9781099423