बुधवार, 26 नवंबर 2025

हथियार


पति पत्नि में चल रही थी 
बहस ज़ोरदार
दोनो तरफ से हो रही थी 
सद्वचनो की बोछार
हमेशा की तरह इस बार भी
पत्नि जीती, पति ने मानी हार
मुँह लटकाए होले होले
श्रीमान श्रीमती जी से बोले
क्यों मुँह की तोप से
तानों के करती रहती हो प्रहार
कभी तो हमारे आगे भी
डाल दिया करो हथियार

पत्नी जो काट रही थी आलू
अचानक हो गयी दयालू
और बोली, ठीक कहते हो
इस परिवार की कश्ती के
टूटे हुए पतवार
लो डाल दिया मैने हथियार

इतना कहकर उसने
आलू काटता हुआ चाकू
पति के सामने पटका
पति को लगा ज़ोर का झटका
पत्नी अति भोली
इठलाती हुई बोली
अब इस हथियार को उठाओ
आलू काटो- सब्जी बनाओ
खुद खाओ ना खाओ पर मुझे खिलाओ।

लेखक(कवि)
मुकेश ' कमल'
7986308414

दो प्यार की बातें


मिलते ही शुरु करदी बेकार की बातें
कभी तो कर लिया करो दो प्यार की बातें।

समझों कभी तो मेरे दिल की धड़कनों का राज़
नाज़ुक सी उंगलियों से चाहत का छेड़ो साज़
मुस्कुराओं ना करो तक़रार की बातें
कभी तो कर लिया करो दो प्यार की बातें।

बेकार की बहस में क्यों जवानी ये खोये
यूँ ही बिता के इसको हासिल ना कुछ होये
अपनी कहों मेरी सुनों ना करों संसार की बातें
कभी तो कर लिया करो दो प्यार की बातें।

अनमोल है हर-पल ‘कमल’ जो प्यार में गुज़रा
महबूब का माशूक़ के दीदार में गुज़रा
आग़ोश की बातें, बाहों के हार की बातें
कभी तो कर लिया करो दो प्यार की बातें।

लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414

दर्द छुपा लेना



ज़ख्म खा खा कर दुआ देना
सीख लिया हमनें भी दर्द छुपा लेना

जिसके लिये ज़हान में कोई जगह नहीं
आता है हमें उसको सीने से लगा लेना

काम निकल जाये है फिर कौन किसी का
पड़ जाये ज़रुरत तो नमश्कार बुला लेना

शहर की गलियां अब बीमारी का घर है
जा के किसी पहाड़ पे ताज़ा हवा लेना

दुनियां की भागम-भाग से जो वक़्त मिल जाये
कुछ देर अपने आप से खुद को मिला लेना

लोगों के सामने रोने से क्या होगा 
कहीं बैठ अकेले में ही आंसू बहा लेना

नफ़रत की दुकानों में है प्यार कहाँ ‘कमल’
इन सौदागरों के पास से अच्छा है विदा लेना

लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414

ससुर का ज्ञान

छोड़ दीजो सुरताल ज्ञान को ज्ञान ससुर का करलो
द्वितिय सिमर भगवान प्रथमें ध्यान ससुर का धरलो
पिता तुल्य है ससुरजी, तेरी बीवी का बाप है 
सास अगर है तान द्रुत, ससुर विलम्बित आलाप है
ताल बिना संगीत अधूरा, ससुर बिना ससुराल
खुश है तो खा मुर्ग-तंदूरी, दु:खी तो मूंगी दाल
ससुर अगर राज़ी है तो है बीवी जी भी राज़ी
साला-सलहज़, साली खुश है, खुश है सासु माँज़ी
मानो ‘कमल’ कविराय ससुर को दूजे पप्पा
जाने कब वसीयत पे तेरे नाम का लग जाये ठप्पा

लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414

ज़रुरत कहाँ है



इंसान में रही इंसानियत कहाँ है
कहता है मुझे इसकी ज़रुरत कहाँ है

हर और है हिंसा, दंगे-फसाद, नफ़रत
जाओ कहीं भी मिलती राहत कहाँ है

मतलब के सारे रिश्ते मतलब के रिश्तेदार
रिश्तों में पहले जैसी मुहब्बत कहाँ है

माँ-बाप के पैसों से जो करते आवारागर्दी
उन शरीफ़ज़ादों में शराफ़त कहाँ है

बच्चें भी करने लग गये, बाते बड़ों वाली
बच्चों में बच्चों जैसी आदत कहाँ है

मज़लूम को जहाँ पे इन्साफ़ मिल सके
तू ही बता ‘कमल’ वो अदालत कहाँ है

लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414

कुछ उपलब्धियां देश की


कल किसी ने कहा  
अपना देश पीछे हटता जा रहा है
हर क्षेत्र में इसका 
रुतबा घटता जा रहा है
मैंने कहाँ ‘, पगले देश घट नही बढ़ रहा है
नित नई उंचाईयों पे चढ़ रहा है,’ 
कांग्रेस घास की भांति 
जनसंख्या बढ़ रही है
तापमान की भांति 
कीमतें उपर चढ़ रही है
बेरोज़गारी का अज़गर 
युवापीढ़ी को निगल रहा है
देश कितना फूल-फल रहा है
भ्रष्टचार का सुर्य उदय हुआ है
ईमानदारी का सूर्य ढल रहा है
आम आदमी इसकी लगाई 
आग में जल रहा है
मंत्रियों का पेट
रिश्वत का वेट
चीज़ों का रेट
ब्याजखोर सेठ
नेता के वादें
नापाक़ इरादें
बस्ती के दादे
बिगड़े रईसज़ादे
भाई भतीजावाद
चोर बने साध
राजनीतिक अपराध
क़ैदी हो आज़ाद
कश्मीर में आतंकवाद
कुर्सी का चक्कर
विपक्ष से टक्कर
चाय में शक्कर
दाल में कंक्कर
चुनावी भाषण
और ऊंचा आसन
मिलावटी राशन
तानाशाही शासन
राजनैतिक दल
गुंडों में बल
नगरनिगम के नल
उनमें दूषित जल
ये कुछ उपलब्धियां है
जिनमें देश आगे बढ़ा है
ओर तिरंगे को विश्व मानचित्र 
पर ऊंचा किये खड़ा है।

लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414

आंखों का दरियां-अश्कों का पानी



ज़ख़्म दिल के छुपायें भी जाते नहीं 
ये सभी को दिखायें भी जाते नहीं
आंखों के दरियां में अश्कों के पानी से
आतिशें-ग़म बुझायें भी जाते नहीं

मैंने सोचा जलाकर उन्हें राख कर दूँ
तेरी यादों के सब निशां खाक़ कर दूँ
उनकों देखा तेरा, उसमें चेहरा दिखा
मुझसे ख़त वो जलायें भी जाते नहीं
ज़ख़्म दिल के.............................

क्या से क्या हो गया मैं नहीं जानता
मुझसे आख़िर हुई थी क्या ऐसी ख़ता
कैसे तुझसे ज़ुदा हो के ज़िंदा हूँ मैं
ग़म ये कहके बताये भी जाते नहीं
ज़ख़्म दिल के.............................

प्यार के आशियां पे गिरी बिजलियां
छुआ शबनम को, जल गयी उंगलियां
ज़िंदगी एक पहेली के जैसी लगे
रिश्तें है पर निभायें भी जाते नहीं
ज़ख़्म दिल के.............................

ना ग़ुलशन रहा, ना कली, ना वो फूल
अब है वीराना वो वहाँ उड़ती है धूल
‘कमल’ रौंदे हुऐ फूल पैरों तले
ज़ुल्फ़ों में सजायें भी जाते नहीं
ज़ख़्म दिल के.............................

लेखक(कवि),
मुकेश ‘कमल’
7986308414