जलने लगा है चाँद हुस्नो-शबाब से
देखा करो ना आईना कहदो ज़नाब से
है ख़ुद गुलाब जानम ये सुर्ख़ होंठ तेरे
इनको क्यों रंग डाला है तुमने गुलाब से
जिस तरफ पड़ी मदहोश सी नज़र तेरी
वहीँ ज़ाम लग गए है छलकने शराब से
ऐ मेरे चाँद तू मेरा यक़ीन तो कर
जलवा नहीं है कमतर तेरा आफ़ताब से
एहसान होगा तेरा ये 'कमल' पे बड़ा
चेहरा निकालो तुम जरा ज़ालिम नक़ाब से
लेख़क (कवि ),
मुकेश 'कमल'
09781099423
देखा करो ना आईना कहदो ज़नाब से
है ख़ुद गुलाब जानम ये सुर्ख़ होंठ तेरे
इनको क्यों रंग डाला है तुमने गुलाब से
जिस तरफ पड़ी मदहोश सी नज़र तेरी
वहीँ ज़ाम लग गए है छलकने शराब से
ऐ मेरे चाँद तू मेरा यक़ीन तो कर
जलवा नहीं है कमतर तेरा आफ़ताब से
एहसान होगा तेरा ये 'कमल' पे बड़ा
चेहरा निकालो तुम जरा ज़ालिम नक़ाब से
लेख़क (कवि ),
मुकेश 'कमल'
09781099423