उसका घर जिस गली में, वो गली अच्छी लगी
उसकी सूरत सलोनी, सावली अच्छी लगी
मैं नहीं भंवरा जो, हर गुलचीं पे मंडराता फिरे
इस हसीं गुलशन की बस, एक वो कली अच्छी लगी
दिल लगाया है ये उससे, दिल्लगी तो की नहीं
दिल चली जो संग लेकर, मनचली अच्छी लगी
रखी थी थाली में यूं तो, बर्फी, गुलाबजामुने
पर दिलें नादां को वो, गुड़ की डली अच्छी लगी
लबों से ज़्यादा सवालात, थे उसकी आँखों में
सबको को जो करदे निरुत्तर, प्रशनावली अच्छी लगी
लड़कियां तो और भी थी पर ना-जाने क्यों 'कमल' को
इस भरी दुनियां में एक वो, बावली अच्छी लगी
लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423
उसकी सूरत सलोनी, सावली अच्छी लगी
मैं नहीं भंवरा जो, हर गुलचीं पे मंडराता फिरे
इस हसीं गुलशन की बस, एक वो कली अच्छी लगी
दिल लगाया है ये उससे, दिल्लगी तो की नहीं
दिल चली जो संग लेकर, मनचली अच्छी लगी
रखी थी थाली में यूं तो, बर्फी, गुलाबजामुने
पर दिलें नादां को वो, गुड़ की डली अच्छी लगी
लबों से ज़्यादा सवालात, थे उसकी आँखों में
सबको को जो करदे निरुत्तर, प्रशनावली अच्छी लगी
लड़कियां तो और भी थी पर ना-जाने क्यों 'कमल' को
इस भरी दुनियां में एक वो, बावली अच्छी लगी
लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423