मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

जिनके घर शीशे के होते

अध्यापक महोदय 
कक्षा में आते ही

छात्रो को देकर एक वाक्य अधूरा
बोले इसे करके दिखाओ पूरा

वाक्य था,
जिनके घर शीशे के होते हैं वो
छात्र सोच में पड़ गये की ये पूरा कैसे हो

इतने में एक बच्चा
अकल का कच्चा
मन का सच्चा

देखने  में अति भोला
मासूमियत से बोला

श्रीमान
जिनके घर शीशे के होते है
वो खुद को 
लोगो की नज़रों से बचाकर
बदलते हैं कपड़े बत्ती बुझाकर.

लेखक (कवि),
मुकेश "कमल"
09781099423

                                   

उस्तरे से बचाव


सैलून में हम गये कराने शेव
नाई साहब शेव करने लगे
उस्तरे की धार तेज़ रफ़्तार
देख हम डरने लगे

उस्तरे की धार करता हुआ हाई
बोला नाई, जनाब आप हो कितने भाई
हम सोच रहे थे ये नाई है या कसाई

मैं मौन, उस्तरा लहराया
उसने अपना प्रश्न फिर दोहराया

जनाब आप कितने भाई हो.....
मैं बोला,तेरे उस्तरे से बच गया तो तीन,
वरना समझ लेना दो.............
                              
लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423


छोटी साली


साली कोई भी चलेगी, पर छोटी का क्या कहना
अरे जैसी भी हो प्यारी,  होती है बीवी की बहना

शर्म बड़ी से आये,  छोटी संग ठिठोली होती
जीजा जी की शानदार, ससुराल में होली होती

छोटी साली का नखरा और, उसकी चुहलबाज़ी
अच्छा लगता है सुनना, उसके मुख से जीजाजी

होती है ससुराल की रौनक,प्यारी छोटी साली
क्या पड़ता है फर्क अरे, वो गोरी हो या काली

जीजा साली का होता है, हंसी मज़ाक का रिश्ता
बड़ी हो तो है मूंगफली, और छोटी हो तो पिश्ता

बड़ी साली है सख्त छुहारा, छोटी नर्म खज़ूर
बड़ी भी हो पर,  छोटी साली होये जरूर

कमल नहीं छोटी साली, टाईम ना वेस्ट करेंगे
अरे सास-ससुर से उसके, लिये रिक्वेस्ट करेंगे

लेखक(कवि),
मुकेश कमल
09781099423


जाने मेरे देश में


जाने मेरे देश में हो रहा क्या आज कल,
हो गये हैं राज फिर से जो खुले थे राज कल

कृष्ण मुरली की धुन में डूबे, और द्रोपदी की,
लूटी कौरवों ने मिलके बीच सभा में लाज़ कल

मुँह छिपा के रोया था संविधान फिर से देश का,
एक गधे के सिर पे शोभित देख शाही ताज कल

पॉप राक रैप ज़ैज़ डिस्को की धमाल में,
बेसुरे हो जाएँगे ये शास्त्रीय साज़ कल

आज बेशक कोई तुझको पूछता ना हो 'कमल',
लेकिन तेरे अंदाज़ पर होगा सभी को नाज़ कल

लेखक (कवि)
मुकेश 'कमल'
09781099423

सोमवार, 5 दिसंबर 2016

पहले वो जानवर रहा है

सच कौड़ियों में झूठ का है रेट बड़ा हाई,
झूठ के बाज़ार में सच की कदर कहाँ है.

जज झूठा वकील झूठे, झूठे गवाह सारे,
अन्याय के इस राक्षस से न्याय डर रहा है.

झूठा तो खा रहा है मुर्गा तंदूरी यारों,
सच्चा तो बस पानी से ही पेट भर रहा है.

मज़लूम की चीखें दबी है झूठ के इस शोर में,
है फिक़्र किसको कोई बेमौत मर रहा है.

इंसान से रहती है, इंसानियत आशा,
सबको पता है पहले वो जानवर रहा है.

अफ्सोस कमल सच पे कोई करता नही यकीं,
झूठ पे बंद आंख कर विश्वास कर रहा है.

लेखक (कवि),
मुकेश कमल

09781099423

दंगा करदे


मुंशी गर ना लिखे रपट दंगा करदे
थानेदार जो दे डपट दंगा करदे

जातिवाद के विरुध तू भाषण दे जमके
बात जात पे आए तो झट दंगा करदे

दो गुंडे दो मुस्टंडे चल संग ले कर
बोले गर कुछ कोई झपट दंगा करदे

लोक भलाई हेतु जो धन माल मिले
चट कर जा सारा बजट दंगा करदे

यूँ तो नेता जी पूरे ही गाँधीवादी हैं
मन में लेकिन भरा कपट दंगा करदे

राजनीति में गर छाना हैं तुम्हे कमल
टिकट मिलेगा शॉर्टकट दंगा करदे

 लेखक(कवि)

 मुकेश 'कमल'
09781099423

जुल्मी खारिश

इश्क का रोग लगा हैं, ये कैसे पता चलता हैं,
रोगी को नींद आए ना पड़ा करवट बदलता हैं.

ना हैं मुकाबले में इसके टाइफाइड,शुगर, मलेरिया,
कॅन्सर एड्स से भी घातक बीमारी लोवेरिया.

हो कितना बड़बोला वो खामोश लगता हैं,
इश्क का रोगी शेर भी खरगोश लगता हैं,

अगर लग जाए पहलवान को वो भूलता कुश्ती,
समझदार के भी भेजे में कोई बात ना घुसती
,
ना लगता मान पढ़ाई में किताबें बंद मिलती हैं,
खुले किताब तो फूलों की उसमे गंध मिलती हैं.

फूल के संग रखता हैं वो माशूक की तस्वीर,
खुद को रांझा कहता हैं कहे माशूक को वो हीर.

दवा इसकी हैं या तो मौत हैं या वसलें -यार हैं,
नाम इस बीमारी के मुहहब्त, इश्क, प्यार हैं.

रहना बचके सदा 'कमल' की बस इतनी गुज़ारिश हैं,
नहीं रिंग गार्ड से मिटती ये ऐसी जुल्मी खारिश हैं.

लेखक (कवि)

मुकेश 'कमल'
09781099423