रविवार, 30 अक्टूबर 2016

मन्नत नहीं माँगी



कौन कहता है की हमने, मन्नत नहीं माँगी
खुदा से तुझको माँगा था, जन्नत नहीं माँगी

चाहते थे मिल जाए तेरे दिल में एक कोना
करने के लिए हुकूमत तो रियासत नहीं माँगी

दिल के मंदिर में बिठाकर, पूजा करें तेरी
किसी और की तो हमने, इबादत नहीं माँगी

तेरे सामने हम इश्क की कर पाए पैरवी
ना माँगा कोई वकील वकालत नहीं माँगी

तेरे साथ जियुं और, तेरे साथ मरूं मैं
हर हाल खुश हूँ शानो,-शौकत नहीं माँगी

कमल' को पल भर को तेर, प्यार मिल जायें
ता-उम्र तो उसने तेरी चाहत नही माँगी

लेखक (कवि)
मुकेश 'कमल'
09781099423

शनिवार, 29 अक्टूबर 2016

चिंतित हैं आदमी


शोषण के जुर्म में यूँ ही आरोपित है आदमी
औरत नहीं है शोषित, शोषित है आदमी

झूठे दहेज केसो की तारीख पे तारीख
हिरासत में ज़मानत से भी वंचित है आदमी

हाथ तो है दूर ज़ुबान भी नहीं चलती
नारी के आगे चारों खाने चित आदमी

दिन रात कमा इसके लिए गधे की तरह
काम करते करते होता, मूर्छित है आदमी

हो जाए ना सरेराह रुसवा 'कमल' कहीं
बदनामियों के डर से, चिंतित है आदमी

लेखक (कवि),
मुकेश 'कमल'
09781099423 

अंधेरा

दीप तु चलना जलाते, कुछ तो कम होगा अंधेरा
कुछ तो होगी रोशनी, अब तलक भोगा अंधेरा

रोशनी सच्चाई है, और है बस धोखा अंधेरा
उतना बढ़ता जाएगा, जितना है रोका अंधेरा

आँख खोलो देख लो, अब कहाँ जो था अंधेरा
आँख में होता नहीं, दिल में हैं होता अंधेरा

रात भर हैं जागता, दिन में हैं सोता अंधेरा
शम्मा तो रोती हैं 'कमल', साथ हैं रोता अंधेरा

लेखक (कवि)
मुकेश 'कमल' 
09781099423 

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2016

अश्क़ों का समंदर

एहसास है दम तोड़ते नफरत के शहर में
सांप के मूहं में जैसे तड़पे छछूंदर है

हाथों में जिसके लाठी है भैंस उसी की
मज़बूर से तो रोटी यहाँ छींनते बंदर है

भगवान है बदनाम इंसान का है काम
पापों के बने अड्डे भगवान के मंदिर है

जूतें भी गालियां भी खाता रहे हंसता रहे
राजनीति के खेल में नेता वो धुरंधर है

प्यार के फरमान की फतवों ने जगह लेली
आतंक की इस आग से बच पाना मुक़द्दर है

दर्द तो अपना कोई चाहता नही बताना
चेहरा ये बयां करता है दिल के जो अंदर है

डूब जाता हूँ कमल पर सांसे टूटती नहीं
ऐसा महासागर मेरे अश्क़ों का समंदर है

लेखक (कवि),
मुकेश कमल
09781099423 

आरती पत्नि प्यारी की


आरती पत्नि प्यारी की-सास की राजदुलारी की

मायके में फिरती इतराती-मियां को नखरे दिखलाती
इठ्लाती और लहराती, 
चले तनके-माधुरी बनके
तीखी तेज़ कटारी की-सास की राजदुलारी की

ना माने बात पति की है, लगे ये बिना मति की
हमारी दुर्गति की है, 
करूं में क्या-दवा तो बता
इस सरदर्द बीमारी की-सास की राजदुलारी की

ये मेकअप की दीवानी है, कुमोलिका की ये नानी है
हिट्लर मेरी जनानी है, 
सदा अकड़े-सदा झगड़े
आफत भरी पिटारी की-सास की राजदुलारी की

रहती है टी.वी में डूबी, ये मेरी जानी मेहबूबी
अज़ूबा है या अज़ूबी, 
मेरी बीवी-है-या टी.वी
स्टार-प्लस की मारी की-सास की राजदुलारी की

झाड़ू मुझसे लगवाती, बर्तन मुझसे मंजवाती
खाना भी मुझसे पकवाती, 
पाव भाजी-बना दो ना जी
कहे ताज़ी तरकारी की-सास की राजदुलारी की

फंस गया हूँ शादी करके, छुटेगा अब पीछा मरके
कपड़े धोये टब भरके, 
साड़ी सलवार-धोवे है यार
कमल तो अपनी नारी की-सास की राजदुलारी की

लेखक (कवि),
मुकेश कमल

09781099423