शुक्रवार, 3 मार्च 2017

गुड़ की डली अच्छी लगी

उसका घर जिस गली में, वो गली अच्छी लगी 
उसकी सूरत सलोनी, सावली अच्छी लगी 

मैं नहीं भंवरा जो, हर गुलचीं पे मंडराता फिरे 
इस हसीं गुलशन की बस, एक वो कली अच्छी लगी 

दिल लगाया है ये उससे, दिल्लगी तो की नहीं
दिल चली जो संग लेकर, मनचली अच्छी लगी 

रखी थी थाली में यूं तो, बर्फी, गुलाबजामुने  
पर दिलें नादां को वो, गुड़ की डली अच्छी लगी 

लबों से ज़्यादा सवालात, थे उसकी आँखों में 
सबको को जो करदे निरुत्तर, प्रशनावली अच्छी लगी 

लड़कियां तो और भी थी पर ना-जाने क्यों 'कमल' को 
इस भरी दुनियां में एक वो,  बावली अच्छी लगी 

लेख़क 
कवि  मुकेश  'कमल' 
09781099423 

5 टिप्‍पणियां:

  1. रखी थी थाली में यूं तो, बर्फी, गुलाबजामुने
    पर दिलें नादां को वो, गुड़ की डली अच्छी लगी
    भावनापूर्ण अभिव्यक्ति। सुंदर "एकलव्य"

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  2. कौन है गुड़ की डली मुकेश जी।

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  3. वाह् वाह् कमल जी बहुत खुब ।

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