गुरुवार, 23 मार्च 2017

घूँघट की आड़ से

छोटी सी बात पर 
सुहागरात पर
घूँघट करने को कहा तो
बीवी हुई नाराज़
आजकल बकवास हो गया
पहले होता था लाज़
पूछा हमने उससे घूँघट
ना करने का राज़
बोली ' चुनरी सर पर रखती
होती सर में खाज़
ये सुन मेरे मूँह से अचानक 
कुछ ऐसा निकल गया
जिससे सुहागरात का सारा
वातावरण बदल गया
मैंने कहां 'भाग्यवान
चुनरी का दोष नहीं
लगता है तुम्हारे सिर में
जूएं पड़ गयी
मज़ाक में इतना कहते ही
श्रीमती मुझ पर राशन पानी
लेकर चढ़ गयी
बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ी की
तलाक़ तक बढ़ गयी
मैं कौशिश कर रहा था कि
सामान्य हो हालात
वर्ना मिट्टी में मिल जायेगी
आज ये सुहागरात
मैं उससे बोला
करने को डैमेज कण्ट्रोल
माय डिअर बेबी डॉल
आई लव यू
माय हार्ट, माय सोल
मैं तो तुम्हे सभ्य बनाना चाहता था
इस ज़ालिम ज़माने की नज़र ना लगे
इसलिए घूँघट करवाना चाहता था
मेरी हुस्नपरी बिन घूँघट तुम्हे देखकर
हर कोई पागल बावला हो जाएगा
ओर सीधी धूप में तुम्हारा ये
सलोना रंग सांवला हो जायेगा
डॉर्लिंग जिस समाज में हम रहते है
उसके भी कुछ क़ानून-क़ायदे है
अरे तुम क्या जानो घूँघट करने से
औरत को क्या क्या  फ़ायदे है
घूँघट करने से छेड़ता कोई मवाली नहीं
प्रदूषण के कारण चमड़ी पड़ती काली नहीं 
जानू घूँघट हमारी सदियों की परंपरा है
इसकी बुनियाद मैंने आज तो डाली नहीं
घूँघट चेहरे के दाग-धब्बे छुपाता है
बुज़ुर्गों की नज़र में सँस्कारी बनाता है
सुहागरात पर घूँघट का रिवाज़ होता है
दूल्हा अपनी दुल्हन का घूँघट उठाता है
 फिल्मो  में भी तो गाने है 
बॉलीवुड भी घूँघट को माने है
घूँघटे में चंदा है फिर भी है फैला
चारों और उजाला
होश ना खो दे कही
जोश में देखने वाला
जोश सुन दुल्हन में आ गया जोश
शत्रुघ्न सिन्हा सी दहाड़कर बोली खामोश
मैं तुम्हारी तरह रूढ़िवादी नहीं
आजकल की आधुनिक नारी हूँ
और तुम जैसे मर्यादा पुरुषोत्तमो
पर मैं अकेली ही भारी हूँ
अरे उजड़े-चमन,
नज़ारे बहार के देखो
सति-सावित्री छोड़ो,
हम है राही प्यार के देखो
उसमें आमिर खान कहता है
घूँघट की आड़ से दिलबर का
दीदार अधूरा रहता है
जब तक ना पड़े आशिक़ की नज़र
श्रृंगार अधूरा रहता है 
मेरे साथ निभानी है तो 
फैशनेबल इंसान बनो 
मैं ऑलरेडी जूही चावला हूँ 
अब तुम आमिर खान बनो 
मैं  उस जूही चावला में 
अपने ख्वाबों की 
दुल्हन तलाश कर रहा हूँ 
दिलीप कुमार की सोच के साथ 
आमिर खान होने का प्रयास कर रहा हूँ 
ये घूँघट सुहागरात पर ही 
तलाक़ करवा देता 
अब धीरे धीरे मरूँगा 
ये तो रात ही मरवा देता 
श्रीमति सही कहती है 
ये घूँघट लाज़-शर्म सब बेकार है 
साड़ी-सूट नही जीन्स चलती है 
फैशनेबल संसार है 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423  



सोमवार, 20 मार्च 2017

अंधों का काना राजा


गूँगी है आवाम और, बहरी सियासत है
आज भी अंधो का राजा, कोई काना बनता है


मंदबुद्धि लोग हम अशिक्षा के रोगी हुऐ
चतुर-चापलूस नेता जी सयाना बनता है


वोट दी स्पोर्ट किया, संसद भेजा जिसे
आज पहचानता ना अनजाना बनता है


कोठी पे जो जाए, लेके जनता समस्यायें
दिल्ली गए नेता जी ये ही, बहाना बनता है


जिस क्षेत्र के हो प्रतिनिधि सांसद महोदय
एकबार वहां भी तो, शक्ल दिखाना बनता है


हम आम आदमी है गम खाके जी रहे है
आप ख़ास आपको, ज़हर खाना बनता है


उसको सुधारना है, लोकतंत्र छलिया जो
टेंटुआ समझ ई वी एम , दबाना बनता है

पांच साल चुन 'कमल', अभी तक भुगता है
इस दफा, चुनावों में उसे, दफ़नाना बनता है


लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423

शुक्रवार, 3 मार्च 2017

गुड़ की डली अच्छी लगी

उसका घर जिस गली में, वो गली अच्छी लगी 
उसकी सूरत सलोनी, सावली अच्छी लगी 

मैं नहीं भंवरा जो, हर गुलचीं पे मंडराता फिरे 
इस हसीं गुलशन की बस, एक वो कली अच्छी लगी 

दिल लगाया है ये उससे, दिल्लगी तो की नहीं
दिल चली जो संग लेकर, मनचली अच्छी लगी 

रखी थी थाली में यूं तो, बर्फी, गुलाबजामुने  
पर दिलें नादां को वो, गुड़ की डली अच्छी लगी 

लबों से ज़्यादा सवालात, थे उसकी आँखों में 
सबको को जो करदे निरुत्तर, प्रशनावली अच्छी लगी 

लड़कियां तो और भी थी पर ना-जाने क्यों 'कमल' को 
इस भरी दुनियां में एक वो,  बावली अच्छी लगी 

लेख़क 
कवि  मुकेश  'कमल' 
09781099423 

गुरुवार, 2 मार्च 2017

बैठ ख़ुद से सलाह करना

ना भूल कर वो गुनाह करना 
कि पड़ जाए नीची निगाह करना 

जो तेरे कुल को करे कलंकित
वो काम क्योंं ख़्वामख़ाह करना 

जब रिश्तों में प्यार-अदब रहे ना 
हो रिश्तें मुश्किल निबाह करना 

उसकी सूरत नहीं सीरत देखियेगा 
जिससे भी चाहो निकाह करना 

ख़ुशी से ले ले जो मिल रहा है 
जो मिल सके ना क्यों चाह करना 

ख़ुदा को क्या मूँह दिखलाओगे 
तुम, ये बैठ ख़ुद से सलाह करना 

'कमल' तू फिक्र कर दोस्तों की 
ना दुश्मनों की परवाह करना 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 








मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

लक़ीरें नहीं, कोरी हथेली है

ज़िन्दगी एक पहेली है 
हर दिन नई नवेली है 
बे-बसी खड़ी है हर मोड़ पर 
मज़बूरी वक़्त की सहेली है 

दरवेश है मज़ार की ,
सीढ़ी पे पड़ा है  वो 
आसमाँ ही छत है 
उसकी  कहाँ हवेली  है 

उड़ जाए धूल बनकर ,
काया मिट्टी की ढेली है 
करोड़ों जाने लेने वाली 
मौत, ये मौत अकेली है 

बाबा है बाल-ब्रह्मचारी, 
शायद इसीलिए  भक़्तों 
उनका चेला नहीं है कोई, 
पर सैंकड़ों चेली है 

कुर्सी कलाकंद है , 
है नेता गुलकंद 
चमचें  है चाशनी, 
जनता गुड़ की भेली है 

क्या होती है मुसीबत, 
बस जानेगा वो ही 
भुक्तभोगी है जो , 
मुसीबत जिसने झेली है 

ये क्या मज़ाक 'कमल', 
तेरे साथ हुआ है  यहाँ 
किस्मत की लक़ीरें नहीं, 
तेरी कोरी हथेली है 

लेख़क
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 

शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

मैं हूँ मरुस्थल

क्या है दूसरा और मुझसा कोई 
मैं वो हूँ जिसको ना समझा कोई ॥ 

मैं किसको जाकर के अपना कहूँ 
नहीं है यहाँ मेरा अपना कोई ॥ 

मैं हूँ वो मरुस्थल जहां पर कभी 
ना बादल का टुकड़ा है बरसा कोई ॥ 

बस प्यार के चंद लफ़्ज़ों की ख़ातिर 
ना जितना मेरे और तरसा कोई ॥ 

मैंने ढूँढा बहुत पर मिला ना 'कमल'
बड़ा दुःख मुझे मेरे दुःख सा कोई ॥ 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423 

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

ये मेरी डायरियाँ ज़िन्दगी

ना पूछों मैं कैसे जिया ज़िन्दगी 
तबाह यूं ही अपनी किया ज़िन्दगी ॥ 

सिर्फ एक घूँट अमृत की ख़ातिर 
ज़हर ता-उम्र है पिया ज़िन्दगी ॥ 

जो था पास सब कुछ लुटाता गया 
दिया सबको कुछ ना लिया ज़िन्दगी ॥ 

जिस-जिस पे मैंने भरोसा किया 
दगा मुझको उसने दिया ज़िन्दगी ॥ 

हँसी मेरे लब से चुरा ले गया वो 
मुझे दे गया सिसकियां ज़िन्दगी ॥ 

जो ज़हन में था 'कमल' मैं लिखता गया 
अब है ये मेरी डायरियाँ ज़िन्दगी ॥ 

लेख़क 
कवि मुकेश 'कमल'
09781099423